Friday, February 09, 2018

कठिन हुनर...


कठिन हुनर...

प्यार वही, सिर्फ़ वही
कर सकता है
जो निर्भय हो ।
प्यार वही कर सकता है
जिसका ह्रदय सघन संवेदनाओं से
भरा हो अपने लोगों के लिए ।

फासिस्ट समय हमें
अकेला करता है ।
अकेलापन हमें
भयग्रस्त करता है ।
आतंक की ठंडी बारिश में
दिन-रात भीगते रहते हैं
हमारे ह्रदय,
अकड़ते और सिकुड़ते हुए
धीरे-धीरे अपनी सारी संवेदनाएँ
खो देते हैं I
सुन्दरता और कला और मनुष्यता
बस यही होती है कि
हम सुनते रहते हैं
एक प्रेतात्मा को खून सनी उँगलियों से
पियानो बजाते हुए
और उसके आदी होते रहते हैं I
इसतरह न जाने कब
हम खो देते हैं
प्यार करने की अपनी कूव्वत
और उदास पेड़ बन जाते हैं
सड़क किनारे खड़े
जिससे होकर हत्यारे रोज़ गुज़रते हैं ।
पेड़ से मनुष्य बनने के लिए
होना पड़ेगा निर्भय
ढूँढ़ने होंगे संगी-साथी
और तनकर खडा होना होगा
फासिस्ट समय के ख़िलाफ़,
अपनी अपहृत संवेदनाओं को
फिर से पाने के लिए लड़ना होगा
एक कठिन युद्ध
और प्यार करने का दुर्लभ और कठिन हुनर
फिर से सीखना होगा ।

--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

No comments:

Post a Comment