मैंने भी प्यार की
कुछ जादुई कविताएँ
लिखनी चाही थीं कभी ,
पर जबसे होश सम्हाला ,
हत्याओं का मौसम था
जो कभी ख़त्म ही नहीं हुआ I
अब मैं चालू चलन से अलग हटकर
प्रतिरोध की कविताएँ लिखती हूँ
और बेहतर दिनों की प्रतीक्षा की
और कभी-कभी,
इनी-गिनी कविताएँ
वैसे प्यार की भी
जो युद्ध के दिनों में
और निराशा में डूबे लोगों के बीच
जीते हुए
किया जाता है I
--कविता कृष्णपल्लवी
(29-01-2018)
हत्याओं का मौसम था
जो कभी ख़त्म ही नहीं हुआ I
अब मैं चालू चलन से अलग हटकर
प्रतिरोध की कविताएँ लिखती हूँ
और बेहतर दिनों की प्रतीक्षा की
और कभी-कभी,
इनी-गिनी कविताएँ
वैसे प्यार की भी
जो युद्ध के दिनों में
और निराशा में डूबे लोगों के बीच
जीते हुए
किया जाता है I
--कविता कृष्णपल्लवी
(29-01-2018)
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