Friday, February 09, 2018



मुस्तक़बिल
आज फिर देश के सम्मान की क़समें खा कर
वो उतर आए हैं सड़कों पे, के अब कुछ ना बचे
नन्हीं आँखों में कोई ख़्वाब ना रहने पाए
सहमें, सहमें से दिमाग़ों में
सवालों की जगह
इल्म पाने के ख़यालों की जगह
ख़ौफ़ के सायों का अब राज रहे
और इस देश के सारे बच्चे
जब भी स्कूल की जानिब जाएँ
अपने बस्तों में किताबों की जगह
नन्हें हाथों में लिए ढाल चलें

सारे उस्तादों को ये हुक्म हो
बच्चों को सिखाएँ, हर रोज़
गर अचानक कहीं पत्थर बरसें
गर अचानक कहीं शीशे टूटें
शोले गर रक़्स करें,
वहशी, दरिंदों की तरह
कोई तब इनके बचाओ को नहीं आएगा
सारे उस्तादों को ये हुक्म हो
बच्चों को बताएँ हर रोज़
अब के पथराओ है इस देश के मुस्तकबिल पर
अगली नस्लों के थके हाथों से उम्मीद नहीं
नन्हें हाथों से इन्हें देश बचाना होगा

गौहर रज़ा
मिर्ज़ापुर, UP
27.1.18

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