Saturday, December 01, 2012

एक कर्मठ, अडिग क्रान्तिकारी की विरासत को नेस्‍तनाबूद किये जाने से बचाने की अपील


इस देश में, ख़ासकर हिन्‍दी भाषी क्षेत्र में, वामपंथी बुद्धिजीवियों, संस्‍कृतिकर्मियों, लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं में से कम ही ऐसे होंगे जो बच्‍चों के मोर्चे पर 'अनुराग ट्रस्‍ट' द्वारा किये जा रहे कामों से और इसकी संस्‍थापक अध्‍यक्ष कमला पाण्‍डेय से परिचित नहीं होंगे। बहुत से लोग '47 के पहले से ही कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के साथ उनकी सक्रियता और उत्तर प्रदेश में माध्‍यमिक शिक्षकों का मज़बूत आन्‍दोलन खड़ा करने में उनकी अग्रणी भूमिका से भी परिचित होंगे। कमला जी जीवनपर्यन्‍त मानवमुक्ति के महान लक्ष्‍य के प्रति समर्पित रहीं और कम्‍युनिस्‍ट उसूलों तथा जीवन मूल्‍यों पर अडिग रहीं। आज वामपंथी आन्‍दोलन के ठहराव-बिखराव और चौतरफा विपर्यय के दौर में जब हर ओर समझौतापरस्‍ती और आदर्शों के क्षरण का घटाटोप है तब उनकी जैसी हस्तियाँ बिरली ही दिखती हैं। अपने जीवन के अन्तिम दो दशक उन्‍होंने भावी क्रान्ति की सांस्‍कृतिक-वैचारिक नींव तैयार करने और नयी पीढ़ी के निर्माण की जिन परियोजनाओं को समर्पित कर दिये उनका महत्‍व भले ही अभी पूरी तरह पहचाना नहीं गया है लेकिन हमारी जानकारी में वह देश में अपने ढंग का अनूठा प्रयोग है। जीवनपर्यन्‍त कमला जी इस प्रयोग की हिफ़ाज़त के लिए लड़ती रहीं मगर अब उनके निधन के साथ ही उनकी इस विरासत को मिटा डालने के नापाक मंसूबे खुलकर सामने आ गये हैं। धुर दक्षिणपंथी, ब्राहमणवादी, रूढ़ि‍वादी परिजनों का एक गुट, अवसरवादी-संशोधनवादी वामपंथी राजनीति की उस धारा के कुछ लोग जिसका कमला जी ने डेढ़ दशक पहले ही परित्‍याग कर दिया था, और वाम राजनीति के कुछ पतित भगोड़े तत्‍व एक अपवित्र गठबंधन बनाकर इस विरासत को बदनाम करने और इसे धूल-धूसरित करने की घृणित कोशिशों में जुट गये हैं।

इस विरासत की हिफ़ाज़त उन सबका सरोकार है जो सामाजिक बदलाव के संघर्ष से, प्रगतिशील मूल्‍यों से, नयी पीढ़ी के निर्माण और नयी संस्‍कृति की रचना से सरोकार रखते हैं। अपना सबकुछ इस मिशन को समर्पित कर देने वाली एक महिला के जीवट और प्रतिबद्धता के दम पर खड़े किये गये सामाजिक उपक्रमों को प्रतिक्रियावादी और मौकापरस्‍त ताक़तों के हाथों तबाह होते हुए नहीं देखा जा सकता। इसीलिए, हमने यह ज़रूरी समझा कि इस चिन्‍ता को आप सबके साथ साझा किया जाये और इससे जुड़े तथ्‍य आपके सामने रखे जायें।


जीवनभर कम्‍युनिस्‍ट उसूलों और जीवन-मूल्‍यों पर अडिग रही वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता की अन्तिम इच्‍छा के साथ आपराधिक विश्‍वासघात



कमला पाण्‍डेय के अन्तिम दिनों का घटनाक्रम अपनेआप में बहुत कुछ स्‍पष्‍ट कर देता है और बहुत से सवाल भी खड़े करता है। 2001 में अनुराग ट्रस्‍ट की स्‍थापना के समय से ही 'अनुराग' का काम देखने वाले कुछ युवा साथी कमला जी की देखभाल करते रहे थे। उनकी दोनों बेटियां दिल्‍ली और रोहतक में रहती हैं और कभी-कभी मिलने आती थीं। पिछली 22 नवंबर को 'अनुराग' की कार्यकर्ता शालिनी सांस की तकलीफ़ के कारण पिछले कुछ दिनों की तरह सुबह उन्‍हें नेबुलाइज़र से दवा देकर आयी थीं और कमला जी हमेशा की तरह बैठकर कुछ लिख-पढ़ रही थीं। उसी दिन संभवत: दोपहर में उनकी छोटी बेटी मधुलिका (मैना) किसी को कुछ बताये बिना अचानक उन्‍हें अपने साथ लेकर कहीं चली गयीं। शाम तक उनके न आ पाने पर शालिनी और ट्रस्‍ट के कोषाध्‍यक्ष तथा प्रतिबद्ध चित्रकार रामबाबू ने कमला जी के नंबर पर फोन भी किया मगर कोई जवाब नहीं मिला। अगले दिन सुबह मैना से पता चला कि कमला जी को पास के सनफ्लावर नर्सिंग होम में भरती कराया गया है। अनुराग ट्रस्‍ट के रामबाबू और शालिनी उसी दिन नर्सिंग होम में उनसे मिलने गये। कमला जी ने बताया कि सांस की थोड़ी तकलीफ़ है लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है और तुम लोग जाकर अपना काम करो। अगले दिन नर्सिंग होम जाने पर पता चला कि कमला जी के परिजन उन्‍हें डिस्‍चार्ज कराकर कहीं ले गये हैं। दो दिनों तक उनकी कोई ख़बर नहीं मिली। 26 नवंबर को सुबह 'दायित्‍वबोध' पत्रिका के पूर्व संपादक विश्‍वनाथ मिश्र का निधन हो जाने पर रामबाबू और कुछ अन्‍य साथी जब निरालानगर स्थित विवेकानंद पॉलीक्लिनिक में थे तभी कानपुर से करंट बुक डिपो की श्रीमती खेतान ने शालिनी को फोन पर बताया कि कमला जी का निधन हो गया है और उनकी देहदान की प्रक्रिया भी पूरी कर दी गयी है। यह हम सबके लिए स्‍तब्‍ध कर देने वाली ख़बर थी। हम लोग भागे हुए मेडिकल कॉलेज गये जहां इस बात की पुष्टि हो गयी कि उसी दिन सुबह 9.30 बजे उनकी बेटियों ने देहदान संपन्‍न कर दिया था।

कमला जी की अंतिम इच्‍छा थी कि मृत्‍यु के बाद उनके पार्थिव शरीर को अनुराग ट्रस्‍ट के पुस्‍तकालय में लाल झंडे में लपेटकर रखा जाये और उन्‍हें लाल सलामी के साथ यहीं से अंतिम विदाई दी जाये। इसके पश्‍चात ही उनके शरीर को देहदान के लिए ले जाया जाये। अपने वसीयतनामे में उन्‍होंने अपनी अंतिम इच्‍छा को स्‍पष्‍ट रूप से लिखा था और विगत 15 अप्रैल 2011 को अनुराग ट्रस्‍ट के वार्षिकोत्‍सव में उन्‍होंने इसकी सार्वजनिक घोषणा भी की थी। वसीयतनामे में उन्‍होंने कहा था:

''मैंने एक कम्युनिस्ट का जीवन बिताया है और कम्युनिस्ट की तरह ही मैं मरना चाहती हूँ। मेरी अन्तिम इच्छा है कि मेरे देहावसान के बाद, मेरे पार्थिव शरीर को सर्वहारा मुक्ति के प्रतीक लाल झण्डे में लपेटकर अनुराग ट्रस्ट भवन के पुस्तकालय कक्ष में रखा जाये और अन्तिम लाल सलामी के साथ मुझे विदाई दी जाये। मेरे निधन के पश्चात किसी भी प्रकार का धार्मिक कर्मकाण्ड या अनुष्ठान कदापि न किया जाये। मेरे शरीर का इस्तेमाल चिकित्सकीय अध्ययन-अनुसन्धान कार्य के लिए करने हेतु अथवा मेरे शरीर के विभिन्न अंगों से ज़रूरतमन्द लोगों को पुनर्जीवन प्रदान करने हेतु, मेरे निधन के पश्चात मेरा पार्थिव शरीर छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ के अधिकारियों को बुलाकर उन्हें सौंप दिया जाये। इसके लिए देहदान की आवश्यक क़ानूनी प्रक्रिया मैं पूरी कर जाऊँगी। यदि किसी कारणवश यह सम्भव न हो सके तो विद्युत शवदाह गृह में, बिना किसी धार्मिक कर्मकाण्ड-अनुष्ठान के मेरा शवदाह कर दिया जाये। अपनी इस अन्तिम इच्छा की पूर्ति का दायित्व मैं अनुराग ट्रस्ट के अपने साथियों के कन्धों पर डालती हूँ और अपनी बेटियों और स्वजनों-परिजनों से अपील करती हूँ कि वे मेरी इच्छा का सम्मान करते हुए अनुराग ट्रस्ट के साथियों की सहायता करें तथा किसी भी प्रकार की बाधा न उत्पन्न करें।''

कमला जी के परिजनों ने न केवल उनकी अन्तिम इच्‍छा का सम्‍मान नहीं किया बल्कि अनुराग ट्रस्‍ट के साथियों सहित उनके राजनीतिक-सामाजिक-शैक्षिक दायरे के व्‍यापक संपर्कों-मित्रों-शुभचिंतकों को उनके अन्तिम दर्शन तक का मौका नहीं दिया। बिना किसी को बताये, गुपचुप ढंग से यह सबकुछ करने के पीछे क्‍या मंशा थी, हम समझ नहीं पा रहे थे। देहदान के फार्म पर भी स्‍पष्‍ट लिखा था कि ''मृत्‍यु के 12 घंटे के भीतर'' अस्‍पताल को सूचित किया जाना चाहिए। विवेकानंद अस्‍पताल जहां उनका निधन हुआ, उनके निवास और अनुराग ट्रस्‍ट के भवन (डी-68, निरालानगर, लखनऊ) से केवल 5 मिनट की दूरी पर स्थित है। इसलिए इतनी जल्‍दी करने का कोई कारण नहीं था।

यह सब यहीं पर नहीं रुका। पिछले 15-16 वर्ष से कमला पाण्‍डेय के सबसे करीबी रहे, हर कदम पर उनके साथ रहे साथियों को किनारे करके परि‍जनों-रिश्‍तेदारों की मण्डली (जिनमें से कई तो उनके जीवित रहते वर्षों से दिखायी नहीं पड़े थे) अनुराग ट्रस्‍ट की लायब्रेरी में काबिज हो गयी। कोई धार्मिक कर्मकांड-अनुष्‍ठान न करने के कमला जी के स्‍पष्‍ट निर्देश के बावजूद लायब्रेरी में हवन किया गया। ट्रस्‍ट की ओर से रामबाबू ने जब आपत्ति की कि कमला जी की अन्तिम इच्‍छा के विपरीत सबकुछ क्‍यों किया जा रहा है तो उन्‍हें बदतमीज़ी से चुप करा दिया गया। कमला जी की पुरानी मित्र और 'अनुराग' के कामों की सहयोगी डा. मीना काला ने भी हवन होने से पहले ही इसका विरोध किया था मगर उनकी भी बात अनसुनी कर दी गयी। बेहद क्षोभ और पीड़ा के साथ यह सब देखकर भी शोक के अवसर का ख़्याल करते हुए हम लोग चुप रहे। मगर इसके बाद 28 नवंबर को हुई शोकसभा में तो सारी हदें पार हो गयीं और इस अपवित्र गठबंधन की असली मंशा ज़ाहिर हो गयी।

शोकसभा में नाटकीय ढंग से 'मनोहर कहानियां' और 'सत्‍यकथा' जैसी जासूसी कहानियों के अन्‍दाज़ में अनुराग ट्रस्‍ट के साथियों पर मनगढ़न्त आरोप लगाये गये। अपवित्र गठबंधन के लोगों के अलावा वहां जो भी लोग मौजूद थे वे भी हतप्रभ थे कि यह शोकसभा कमला जी को श्रद्धांजलि देने के लिए रखी गयी है या फिर उनके सहयात्रियों पर अनर्गल आरोप लगाकर कमला पाण्डेय की विरासत को बदनाम करने के लिए! किसी ने कहा कि अपने अन्तिम दिनों में उन्‍हें अपराधबोध होने लगा था, किसी ने कहा कि पिछले 6 महीनों से वे डिप्रेशन में थीं, कोई बोला कि 'कुछ लोगों' ने उन्‍हें सम्‍मोहित कर लिया था तो किसी ने कहा कि उनका 'ब्रेनवॉश' कर दिया गया था। 70 वर्षों से अपने विचारों और जीवनमूल्‍यों पर अडिग रहने वाली और किसी भी दबाव की परवाह किये बिना हमेशा गहरे मंथन और सोच-विचार के बाद अपने विवेक से फ़ैसले करने वाली कमला जी पर ये आरोप वे लोग लगा रहे थे जो उनके हितैषी होने का दावा कर रहे थे। हालांकि डा. मीना काला सहित कुछ लोगों ने स्‍पष्‍ट कहा कि वे अपने उसूलों पर हमेशा दृढ़ रहीं और नयी पीढ़ी के निर्माण की योजनाओं में ही जीती थीं। घटिया आरोप लगाये जाने पर मीना जी ने विरोध किया तो उन्‍हें चुप करा दिया गया। अनुराग ट्रस्‍ट की ओर से श्रद्धांजलि देने का मौका बार-बार मांगने पर भी रामबाबू को चिल्‍लाकर चुप करा दिया गया और आनन-फ़ानन में दो मिनट का मौन घोषित करके सभा समाप्‍त कर दी गयी। तमाम अनर्गल बातों को सुनकर भी अवसर का ख़्याल करके अनुराग ट्रस्‍ट के साथी चुप रहे क्‍योंकि हम नहीं चाहते थे कि ऐसे अवसर पर कोई अप्रिय स्थिति पैदा हो।

कमला जी की आशंकाएँ सही साबित हुईं


कमला जी को ऐसा कुछ होने की आशंका पहले से थी और इसके बारे में वे अक्‍सर बात करती थीं। 2001 में अनुराग ट्रस्‍ट का विधिवत गठन करके अपना सबकुछ उसके नाम उन्‍होंने पहले ही कर दिया था। फिर भी ज़ोर देकर उन्‍होंने अपना वसीयतनामा तैयार कराया और गत वर्ष 15 अप्रैल 2011 को अनुराग ट्रस्‍ट के दस वर्ष पूरे होने पर शहर के तमाम बुद्धिजीवियों, राजनीतिक-सामाजिक संपर्कों, वाम धारा के मित्रों-शुभचिंतकों और अपने संबंधियों को आमंत्रित करके उन्‍होंने इसे सार्वजनिक रूप से घोषित भी कर दिया था। (देखें, YouTube पर वीडियो (इस लिंक पर क्लिक करें): कमला पाण्‍डेय जी द्वारा अन्तिम इच्‍छा का पाठ - भाग 1, कमला पाण्डे.य जी द्वारा अन्तिम इच्छा का पाठ - भाग 2। वसीयतनामे की सार्वजनिक घोषणा तथा प्रकाशन करने के साथ ही उन्‍होंने इसे बाक़ायदा पंजीकृत भी कराया। (देखें: मेरी अंतिम इच्‍छा: मेरा वसीयतनामा (15 अप्रैल 2011 को अनुराग ट्रस्‍ट के वार्षिकोत्‍सव के अवसर पर श्रीमती कमला पांडेय द्वारा पढ़ा गया): http://anuragtrust.in/wp-content/uploads/2012/11/Kamla-Pandey_Vaseeyatnama.pdf)। इसे भी देखें: श्रीमती कमला पाण्‍डेय द्वारा अपने वसीयतनामे का पाठ और उनके एक साक्षात्‍कार के अंश)

इधर उनकी आशंका बढ़ गयी थी। पिछले कुछ समय से वह अक्‍सर एक साथी को नीचे अपने कमरे में सुलाती थीं और अक्‍सर कहा करती थीं कि तुम लोगों का आगे का रास्‍ता बहुत कठिन होगा। मुझे यह सोच-सोचकर चिंता होती है कि जिस मिशन को हम लोग इतनी दूर तक लेकर आये हैं कहीं वह बाधित न हो जाये। तुम लोग संघर्ष के लिए तैयार रहना। हम लोग उन्‍हें आश्‍वस्‍त करते थे कि अनुराग ट्रस्‍ट की यात्रा को हम किसी कीमत पर बीच में रुकने नहीं देंगे और इसके लक्ष्‍यों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ते रहेंगे।

अब कमला जी के परिजनों और उनके इर्दगिर्द जुटे विध्‍वंसक तत्‍वों की ओर से कहा जा रहा है कि आखिरी दिनों में वे निराश और एकाकी हो गयी थीं। यह सरासर झूठ है। अंतिम समय तक वे बच्‍चों के मोर्चे पर काम को लेकर उत्‍साहित थीं और नयी-नयी योजनाओं पर बात करती रहती थीं। अनुराग ट्रस्‍ट के न्‍यासी मंडल की बैठकों के कार्यवृत्त मौजूद हैं जिनमें बंगला, मराठी और अंग्रेज़ी में किताबों का प्रकाशन शुरू करने, अनुराग बाल पत्रिका को नये कलेवर में निकालने, बच्‍चों की फ़ि‍ल्‍में बनाने और प्रदर्शित करने, न्‍यास का ऑडियो-वीडियो प्रभाग शुरू करने तथा मज़दूर बस्तियों में बच्‍चों के लिए छोटे-छोटे पुस्‍तकालय एवं सांस्‍कृतिक केंद्र, खेलकूद क्‍लब आदि संगठित करने जैसी योजनाओं पर विचार-विमर्श में वे भरपूर उत्‍साह के साथ भागीदारी करती थीं। बेशक वे कभी-कभी ट्रस्‍ट की योजनाओं के क्रियान्‍वयन की गति को लेकर असन्तुष्‍ट और उद्विग्‍न हो जाती थीं। फिर ख़ुद ही कहती थीं कि मैं इस रास्‍ते की चुनौतियों को समझती हूं मगर क्‍या करूं, मेरे पास समय कम है।

सत्तर वर्षों का सुदीर्घ राजनीतिक जीवन: निरन्‍तर गतिमान, सक्रिय और जुझारू


1930 में कानपुर में जन्मी कमला पाण्डेय युवा होने से पूर्व ही राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रवाह से जुड़ गयीं थीं और फि‍र कम्युनिस्ट राजनीति और वाम शिक्षक राजनीति में लगभग आधे दशक तक सक्रिय रहीं। वार्धक्य और निजी जीवन की त्रासदियों के प्रभाव से जर्जर शरीर ने जब असहयोग करना शुरू किया तो कमला जी ने पुत्रियों के सहारे, निषिक्रय-निरुपाय जीते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करने के बजाय अपनी ऊर्जस्विता और रचनात्मकता को भावी पीढ़ि‍यों के स्वस्थ मानस-निर्माण की मुहिम को समर्पित कर दिया और अनुराग बाल पत्रिका, बाल शिक्षा केन्द्र, पुस्तकालय आदि उपक्रमों की शुरुआत की। पिछले बारह वर्षों से अनुराग ट्रस्ट इन्हीं प्रयोगों को आगे विस्तार दे रहा है।

शारीरिक अशक्तता बढ़ने के बाद भी कमला जी की अजेय आत्मा ने कभी हथियार नहीं डाले। अनुराग ट्रस्ट के श्रमसाध्य कार्यों में और अन्य राजनीतिक कार्यों में उनकी अधिक सक्रिय भागीदारी जब सम्भव नहीं रही तो ऐसे कामों को अपने वैचारिक उत्तराधिकारी -- अनुराग ट्रस्ट के युवा साथियों के कन्‍धों पर डालकर कमला जी ने लेखनी उठा ली। जीवन और आन्दोलनों के चढ़ाव-उतार भरे न जाने कितने ही दौर उन्होंने देखे थे। इन सभी जीवनानुभवों को उन्होंने संस्मरणों, शब्दचित्रों,उपन्यास और कहानियों के रूप में लिखना शुरू किया। यह उनकी अनथक जिजीविषा और दुर्द्धर्ष युयुत्सा का ही परिणाम था कि 76-80 वर्ष की आयु में, लगभग पाँच वर्षों की समयावधि के दौरान कमला जी ने एक उपन्यास, तेरह कहानियाँ, संस्मरण और शब्दचित्र लिख डाले और साथ ही बाल साहित्य की वैचारिक पृष्ठभूमि और समस्याओं पर महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक लेखन भी किया। (उनकी दो पुस्‍तकें - 'पश्‍चदृष्टि-भविष्‍यदृष्टि' और 'यादों के घेरे में अतीत' अनुराग ट्रस्‍ट की वेबसाइट पर उपलब्‍ध हैं। देखें यह लिंक:http://anuragtrust.in/2012/12/yadon-ke-ghere-me-ateet/)

कमला जी के जीवन संघर्ष और उनके विचारों के बारे में तथा बच्‍चों के मोर्चे पर उनके सुचिन्तित विचारों को जानने के लिए इन दस्तावेज़ों को ज़रूर पढ़ें:

15 अप्रैल 2011 को अनुराग ट्रस्‍ट के वार्षिकोत्‍सव के अवसर पर लखनऊ प्रेस क्‍लब में आयोजित कार्यक्रम में श्रीमती कमला पांडेय का संबोधन:

http://anuragtrust.in/wp-content/uploads/2012/11/Kamla-Pandey_Sambodhan.pdf

जीवन की सान्ध्यबेला में एक वयोवृद्ध कम्युनिस्ट के कुछ नोट्स, कुछ सिंहावलोकन, कुछ पुनर्विचार (15 अप्रैल 2011 को अनुराग ट्रस्‍ट के वार्षिकोत्‍सव के अवसर पर श्रीमती कमला पांडेय द्वारा प्रस्‍तुत):

http://anuragtrust.in/wp-content/uploads/2012/11/Kamla-Pandey_Sinhavlokan.pdf

मेरी अंतिम इच्‍छा: मेरा वसीयतनामा (15 अप्रैल 2011 को अनुराग ट्रस्‍ट के वार्षिकोत्‍सव के अवसर पर श्रीमती कमला पांडेय द्वारा पढ़ा गया):

http://anuragtrust.in/wp-content/uploads/2012/11/Kamla-Pandey_Vaseeyatnama.pdf

2003 में अनुराग ट्रस्‍ट के कार्यक्रम में कमला पाण्‍डेय का वकतव्‍य: बच्‍चों को बचाओ, सपनों को बचाओ, भविष्‍य को बचाओ

जो लोग अनुराग ट्रस्‍ट के न्‍यास विलेख (ट्रस्‍ट डीड) को देखना चाहते हों, वे यहां क्लिक करें: न्‍यास विलेख

कमला जी का पारिवारिक जीवन दुष्कर-दुरूह और त्रासदियों भरा रहा। उनकी राजनीतिक सक्रियता ने ही नहीं, आन्दोलन के भटकावों-ग़लतियों ने भी उनके पारिवारिक जीवन को प्रभावित किया। लेकिन तमाम चढ़ावों-उतारों के बीच उनका संघर्ष जारी रहा। अपनी स्वतन्त्र अस्मिता को लेकर भी वे सदा संघर्षशील रहीं। अपने परिजनों को अपने विचारों के करीब लाने के प्रयास वे निरन्‍तर करती रहीं लेकिन उनकी दोनों पुत्रियों और उनके परिवारों का उनके विचारों से कोई लेना-देना नहीं था। इनमें से एक पुत्री का परिवार तो धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक विचारों का था और दूसरी का परिवार भी रूढ़ि‍वादी ब्राह्मणवादी कर्मकांडी किस्‍म का था। यह उनके जीवन की एक त्रासदी थी जिसे लेकर वे दुखी भी रहा करती थीं। फिर भी हमें अपेक्षा थी कि उनके परिजन कम से कम उनकी अन्तिम इच्‍छा का तो सम्‍मान करेंगे। लेकिन जो हुआ उसका अनुमान तो शायद कमला जी को भी नहीं रहा होगा।


भावी क्रान्ति की सांस्‍कृतिक-वैचारिक नींव और नयी पीढ़ी के निर्माण का अपने ढंग का अकेला प्रयोग


1992 में लखनऊ में ‘अनुराग बाल केन्द्र’ और ‘अनुराग बाल पत्रिका' के साथ एक छोटी-सी शुरुआत हुई। 2001 में इन्हीं कामों को आगे विस्तार देने के लिए ‘अनुराग ट्रस्ट’ की स्थापना करके कमला जी ने अपना सब कुछ उसे समर्पित कर दिया। आज अनुराग ट्रस्ट लखनऊ, गोरखपुर, गाजियाबाद, इलाहाबाद, पटना, दिल्ली,लुधियाना, चण्डीगढ़ और मुम्बई में सक्रिय है। इन जगहों पर मज़दूर बस्तियों में बच्‍चों को पढ़ाने, उनके लिए सांस्‍कृतिक और कलात्‍मक प्रशिक्षण की कार्यशालाएं आयोजित करने, मध्‍यवर्गीय कालोनियों में घर-घर बच्चों की पुस्‍तकें लेकर जाने और बच्‍चों के साथ विभिन्‍न प्रकार के आयोजन करने जैसी गतिविधियां नियमित रूप से संचालित होती हैं। ‘अनुराग’ पत्रिका के नियमित प्रकाशन के अतिरिक्त हिन्दी और पंजाबी में करीब 100 बाल पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अब बंगला, मराठी और अंग्रेज़ी में भी प्रकाशन शुरू होने वाला है। जल्‍दी ही बच्‍चों की फ़ि‍ल्‍में बनाने और प्रदर्शित करने, न्‍यास का ऑडियो-वीडियो प्रभाग शुरू करने तथा मज़दूर बस्तियों में बच्‍चों के लिए छोटे-छोटे पुस्‍तकालय एवं सांस्‍कृतिक केंद्र, खेलकूद क्‍लब आदि संगठित करने जैसी योजनाओं पर काम शुरू किया जायेगा।

बिना किसी प्रकार की संस्‍थागत सहायता लिये हुए, केवल उद्देश्‍यों से सहमत नागरिकों से सहयोग जुटाकर चल रहा यह प्रयोग इसलिए भी अनूठा है कि इसमें एक भी वैतनिक कर्मचारी नहीं है। सारे काम विभिन्‍न जनसंगठनों के मोर्चों पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं द्वारा स्‍वैच्छिक रूप से किये जाते हैं। बच्‍चों के समग्र वैज्ञानिक एवं सांस्‍कृतिक विकास के लक्ष्‍य को समर्पित अनुराग ट्रस्‍ट अपनी गतिविधियों के माध्‍यम से बच्‍चों को दकियानूसी, अन्‍धविश्‍वासों, धर्मान्‍धता और रूढ़ि‍ग्रस्‍तता से मुक्‍त कर उन्‍हें तर्कपरक, वैज्ञानिक सोच वाला, भविष्‍योन्‍मुखी, सामाजिक सरोकार वाला, संवेदनशील और जिज्ञासु नागरिक बनाने के लिए काम कर रहा है। जैसा कि कमला जी ने गत वर्ष न्‍यास के दस वर्ष पूरे होने पर अपने सम्‍बोधन में कहा था: 

''साथियो! उम्र के इस मुक़ाम पर पहुँचकर कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि हमारे अग्रजों ने एक बेहतर दुनिया की लड़ार्इ लड़ने में चाहे जो भी ग़लतियाँ की हों,अपनी शानदार कुर्बानियों से वे जो दुनिया हमें सौंप गये, वह पहले से बेहतर थी। लेकिन आज के पराजय-बोध, पुनरुत्थान और निराशा को देखकर यह विचार आता है कि हम भविष्य के नागरिकों के लिए, यानी आज के बच्चों के लिए कैसी दुनिया छोड़ जायेंगे? फिर यह ख़याल आता है कि इतिहास की गति पर तो नहीं, लेकिन अपने कर्मों पर तो अपना बस है। यदि हमारी आयु तक पहुँचे हुए मुक्ति-समर के साथी चारपार्इ पर लेटकर मृत्यु की प्रतीक्षा करते रहने के बजाय अपनी बची-खुची क्षमता के हिसाब से सामाजिक सक्रियता का कोर्इ न कोर्इ मोर्चा चुन लें तो हम बच्चों से कह सकेंगे कि हम तुम्हें एक बेहतर दुनिया तो नहीं दे सके, लेकिन उसके लिए जारी संघर्ष के सिलसिले की विरासत तुम्हें दिये जा रहे हैं और दिये जा रहे हैं पुख्‍ता उम्मीदों की एक समृद्ध विरासत।''

आज इसी विरासत को मिट्टी में मिलाने की कोशिश की जा रही है!


तीन गन्‍दे पनालों का अपवित्र संगम!

कमला जी के परिजनों के लिए अनुराग ट्रस्‍ट का पूरा उपक्रम केवल एक संपत्ति से अधिक कुछ नहीं था जिस पर उनकी दृष्टि बहुत दिनों से गड़ी थी। उनकी परम्‍पराभंजक और कम्‍युनिस्‍ट जीवनशैली भी इन रूढ़ि‍वादी, ब्राह्मणवादी और विचारों से धुर दक्षिणपंथी लोगों की आंखों में चुभती थी। उनकी छोटी बेटी के पति का परिवार राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ है, लखनऊ और रोहतक में रहने वाले लोग इसकी कभी भी तस्‍दीक कर सकते हैं। अपनी पुत्रियों और दोनों दामादों के साथ कमला जी का वैचारिक और सांस्‍कृतिक संघर्ष जीवनपर्यन्‍त चलता रहा है जिसकी कुछ झलकियां उनके संस्‍मरणों की पुस्‍तक 'यादों के घेरे में अतीत' में भी मिल जाती हैं। उनके जीते जी तो वे उनकी हां-में-हां मिलाते रहे लेकिन उनके जाते ही शायद उन्‍होंने सोचा कि भले ही कमला जी ट्रस्‍ट की सुरक्षा के सारे क़ानूनी इन्‍तज़ाम कर गयी हों, फिर भी वे उनके साथियों के खिलाफ़ माहौल बनाकर और ज़बर्दस्‍ती का सहारा लेकर उस पर कब्‍ज़ा कर लेंगे। दूसरे, वामपंथी आन्‍दोलन की जिस धारा से एक समय कमला जी जुड़ी हुई थीं उसके पतित और अवसरवादी होते जाने, संशोधनवाद के दलदल में धंसते जाने के साथ ही वे उससे दूर होती गयी थीं। करीब डेढ़ दशक पहले ही उन्‍होंने इस धारा से अपने को राजनीतिक रूप से अलग कर लिया था। बाल मोर्चे पर भी उनकी सुधारवादी सोच से अलग होकर वे इस मोर्चे को आमूलगामी सामाजिक परिवर्तन की परियोजना के एक अंग के रूप में देखती थीं। न केवल व्‍यक्तिगत बातचीत में वे इन लोगों की आलोचना करती थीं बल्कि अपने संस्‍मरणों में भी उन्‍होंने इस धारा के पतन पर तीखी टिप्‍पणियां की हैं। तीसरे, वामपंथी आन्‍दोलन के वे भगोड़े और पतित तत्‍व हैं जो अपने पुराने 'स्‍कोर सेटल' करने और प्रतिशोध का सुनहरा अवसर भांपकर अचानक नमूदार हो गये हैं।

इन तीनों प्रकार के तत्वों के अपने-अपने हित और मकसद हैं लेकिन उन सबका निशाना ए‍क ही है -- जनमुक्ति की व्‍यापक परियोजना के इस अनूठे प्रयोग को बदनाम और नाकाम करना। अगर इन्‍हें रोका नहीं गया तो बड़े जतन और परिश्रम से खड़े किये गये इन तमाम उपक्रमों को नेस्‍तनाबूद करने में ये कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

इस आघात ने हमारे इस संकल्‍प को और भी दृढ़ किया है कि अनुराग ट्रस्‍ट को लेकर कमला जी के स्‍वप्‍नों (जो हम सबके साझा स्‍वप्‍न हैं) को साकार करने और नई पीढ़ी के निर्माण की उनकी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए हम प्राणपण से काम करते रहेंगे। लेकिन इसमें हमें आप सबका सहयोग चाहिए। जो लोग भी आज के दौर में प्रगतिशील मूल्‍यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं, जो सामाजिक परिवर्तन के लिए सांस्‍कृतिक-वैचारिक नींव डालने के महत्‍व को समझते हैं, जो बच्‍चों को साम्‍प्रदायिक ताक़तों और बाज़ार की शक्तियों के लिए छोड़ देने के हामी नहीं हैं, कमला जी के शब्‍दों में जो सोचते हैं कि ''बच्‍चों को बचाना होगा, सपनों को बचाना होगा, भविष्‍य को बचाना होगा'' -- उन सबसे हम अपील करते हैं कि वे इस पूरे मसले पर संजीदगी और मार्मिकता के साथ सोचें और हस्‍तक्षेप करें।

हम आपसे अपील करते हैं कि इस पूरे प्रकरण का विरोध करते हुए और अनुराग ट्रस्‍ट की परियोजना का समर्थन करते हुए पत्र लिखें, ईमेल भेजें और बयान जारी करें।


रामबाबू
अध्‍यक्ष, अनुराग ट्रस्‍ट
एवं न्‍यासी मण्‍डल के अन्‍य सदस्‍य
डी-68, निराला नगर, लखनऊ-226020
फोन: 9935799066, ईमेल: anurag.trust@gmail.com
वेबसाइट: anuragtrust.in

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