Sunday, October 16, 2011

मृत ज्‍वाला

 
मैंने एक सपना देखा। मैं बर्फ के पहाड़ पर दौड़ा चला जा रहा था।
यह एक विशाल, बहुत ऊंचा पहाड़ था जिसकी चोटियां ऊपर बर्फीले आकाश को छू रही थीं, और आकाश जमे हुए बादलों से भरा था जो मछली के शल्‍कों जैसे लग रहे थे। पहाड़ की तलहटी में बर्फ का जंगल था जिसमें पाइन और साइप्रस के पेड़ों जैसी पत्तियां और शाखाएं नज़र आ रही थी। सब कुछ बर्फीला ठण्‍डा था, ठंडी राख जैसा बेजान।
लेकिन अचानक मैं बर्फ की घाटी में गिर पड़ा।
चारों ओर, ऊपर-नीचे सब कुछ बर्फीला ठण्‍डा था, ठण्‍डी राख जैसा बेजान। लेकिन रंगहीन बर्फ के ऊपर अनगिनत लाल छायाएं बिखरी थीं, मूंगे के जाल की तरह आपस में गुत्‍थमगुत्‍था। नीचे देखा तो मेरे पैरों के पास एक ज्‍वाला दिखाई दी।
यह मृत ज्‍वाला थी। इसका रूप लपलपाती लपटों जैसा था, पर यह बिल्‍कुल स्थिर थी, पूरी तरह जमी हुई, मूंगे की शाखाओं की तरह और इसके किनारों पर जमा हुआ काला धुंआ जो सीधा किसी चिमनी से निकला लग रहा था। और चारो ओर बर्फ पर पड़ रहे इसके प्रतिबिम्‍ब चमकती बर्फ में कई गुना होकर असंख्‍य छायाओं में बदल गये थे, जिनके कारण बर्फ की घाटी मूंगे जैसी लाल हो गयी थी।
अहा!
बचपन में तेज चलते जहाजों के कारण समन्‍दर में उठे झाग और धधकती भट्ठी उठती आग की लपटों को देखना मुझे बहुत अच्‍छा लगता था। उन्‍हें देखना मुझे पसन्‍द ही नहीं था बल्कि मैं उन्‍हें साफ-साफ देखना चाहता था। लेकिन वे लगातार बदलते रहते थे और उनका कोई एक रूप होता ही नहीं था। मैं चाहे जितना नज़र गड़ा कर देखता, मेरे मन में कभी उनकी स्‍पष्‍ट छवि नहीं बन पाती थी।
आखिर अब मैंने तुम्‍हें पा ही लिया , मृत ज्‍वाला !
मैंने उस मृत ज्‍वाला को नजदीक से देखने के लिए उठाया तो उसके बर्फीलेपन से मेरी उंगलियां कटने लगीं। लेकिन दर्द सहकर भी मैंने उसे अपनी जेब में डाल लिया। पूरी घाटी एकाएक राख की तरह बदरंग हो गयी। मैं सोचने लगा कि इस जगह से निकला कैसे जाये।
मेरे शरीर से काले धुंए की एक लकीर लरजती हुई सी निकली और तार के सांप की तरह ऊपर उठने लगी। एकाएक लाल-लाल ज्‍वालाएं हर ओर बहनें लगीं और मैं एक विराट अग्निक‍ाण्‍ड के बीचोंबीच था। नीचे देखा तो पाया कि मृत ज्‍वाला फिर से जल उठी थी, मेरे कपड़ों को जलाते हुए बाहर आ गई थी और बर्फीली ज़मीन पर बह रही थी।
''आह दोस्‍त!'' उसने कहा, ''तुमने मुझे अपनी गर्माहट से जगा दिया!''
मैंने उसे आवाज़ दी और उसका नाम पूछा।
मेरे सवाल को दरकिनार करते हुए उसने कहा, ''लोगों ने मुझे इस बर्फीली घाटी में लाकर छोड़ दिया था। मुझे छोड़ देने वाले कब के मर-खप गये। और मैं भी इस बर्फ में जमकर मरने के करीब थी। अगर तुम मुझे गरमी न देते और मुझे फिर से प्रज्‍जवलित न करते, तो बहुत जल्‍दी मैं मर चुकी होती।''
''मुझे खुशी हुई कि तुम जाग गयी। मैं इस बर्फ की घाटी से निकलने के बारे में सोच रहा हूं। और मैं तुम्‍हें अपने साथ ले जाना चाहता हूं ताकि तुम फिर कभी जमो नहीं बल्कि हमेशा-हमेशा के लिए जलती रहो।''
अरे नहीं! तब तो मैं जलकर खत्‍म हो जाऊंगी।''
''अगर तुम जलकर खत्‍म हो गयी तो मुझे बहुत दुख होगा। अच्‍छा होगा कि मैं तुम्‍हें यहीं छोड़ दूं।''
''अरे नहीं! यहां तो मैं जमकर मर जाऊंगी।''
''फिर किया क्‍या जाये?''
''तुम खुद क्‍या करोगे?''उसने उलटकर पूछा।
''जैसा कि मैं तुम्‍हें बता चुका हूं, मैं इस बर्फ की घाटी से बाहर निकलना चाहता हूं।''
''फिर बेहतर यही होगा कि मैं जलते-जलते खत्‍म हो जाऊं।
वह एक लाल धूमकेतु की तरह ऊपर उछली और हम दोनों साथ-साथ घाटी से बाहर आ गये। अचानक एक बड़ी सी पत्‍थर की गाड़ी चलती हुई आयी और मैं उसके पहियों के नीचे दबकर मर गया। लेकिन मरते-मरते मैंने देखा कि पत्‍थर की गाड़ी बर्फ की घाटी में गिर रही है।
''अहा, तुम मृत ज्‍वाला से फिर कभी नहीं मिल सकोगे।'' यह कहते हुए मैं खुशी से हंसा, जैसे इस बात से खुश हूं कि ऐसा ही होना चाहिए था।

लूशुन
(चीन के महान कथाकार)

1 comment: