Thursday, September 01, 2011

मैं जानती हूं पिंजरे का पंछी क्यों गाता है

मैं जानती हूं पिंजरे का पंछी क्यों गाता है
                         माइआ अंजालो

आज़ाद पंछी सवारी करता है हवा की
उड़ता है हवा के साथ प्रवाह के थमने तक,
माइआ अंजालो
गोते लगाता है सूर्य-रश्मियों में
और करता है साहस
ऊंचाइयों को नापने का।

लेकिन अपने छोटे से पिंजरे में 
बेचैन घूमता पंछी शायद ही कुछ देख पाता है
अपने उन्माद की सलाखों के पार,
उसके पर कतर दिए गए हैं
बांध दिए गए हैं उसके पैर भी
इसीलिए, वह गाता है।

पिंजरे का पंछी गाता है कंपकंपाते स्वर में
उन अज्ञात चीज़ों के बारे में
जिनकी चाहत अभी बाकी है,
दूर पहाड़ी पर सुनाई देती है उसकी धुन
जब वह गाता है मुक्ति का गीत।

आज़ाद पंछी सोचता है
ठंडी हवा के एक और झोंके के बारे में
और पेड़ों के उच्छवास से गुज़रती
पुरवाई के बारे में,
उसे याद आते है
रश्मिप्रभा में नहाए बगीचे में रेंगते ताजा कीड़े
और वह पुकारता है आसमान को
अपने ही नाम से।

पर पिंजरे का पंछी खड़ा रहता है
अपने ही सपनों की कब्र पर,
एक दु:स्वप्न से उपजी चीख पर
थरथरा उठती है उसकी परछाई भी,
उसके पर कतर दिए गए हैं
बांध दिए गए हैं उसके पैर भी
इसीलिए, वह गाता है।

पिंजरे का पंछी गाता है कंपकंपाते स्वर में
उन अज्ञात चीज़ों के बारे में
जिनकी चाहत अभी बाकी है,
दूर पहाड़ी पर सुनाई देती है उसकी धुन
जब वह गाता है मुक्ति का गीत।

(कविता का अनुवाद एक मित्र के सौजन्‍य से) (माया एंजेलो माइआ अंजालो (मनोज जी के ब्‍लॉग पर इनके नाम के अनुवाद को देखकर गूगल बाबा की शरण ली और कुछ मित्रों से चर्चा करी तो लगा कि इनके नाम का उच्‍चारण करीब-करीब उसी तरह होगा जैसा मनोज जी ने किया है, इसलिए अनुवाद को सुधार दिया है) की कुछ कविताओं के हिंदी अनुवाद आप मनोज पटेल जी के ब्‍लॉग 'पढ़ते-पढ़ते' पर भी पढ़ सकते हैं)

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