Thursday, May 26, 2011

आग चाहिए

मुहब्‍बत में चांद मत बनो
बन सको तो सूरज बनकर आओ
मैं उससे उत्‍ताप ले लेकर
अंधेरे के जंगल में आग लगा दूंगा ।
मुहब्‍बत में नदी मत बनो
बन सको तो बाढ़ बनकर आओ
मैं उस आवेग को बहाकर
निराशा के बांध तोड़ दूंगा।
मुहब्‍बत में फूल मत बनो
बन सको तो वज्र बनकर आओ
उसकी गड़गड़ाहट को सीने में संजोये
मैं लड़ाई की ख़बरें दिशाओं में फैलाऊंगा।
मुहब्‍बत में पछी मत बना
बन सको तो तूफान बन कर आओ
उस ताकत के बूते पर मैं
पाप का महल ढहा दूंगा
चांद नदी फूल तारे पंछियों को
कुछ दिन के बाद गौर करेंगे
अंधेरे में आखिरी लड़ाई अभी बाकी है
अभी आग चाहिए हमारी कुटिया में

-मुरारी मुखोपाध्‍याय

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