Wednesday, January 12, 2011


मैं ऐसे आदमी से घृणा करता हूं जो उंगली दुखने पर छटपटाने लगता है, जिसके लिए पत्‍नी की सनक क्रांति से अधिक महत्‍व रखती है, ओछी ईर्ष्‍या से घर की खिड़कियां और प्‍लेटें तक तोड़ने लगता है। या वह कवि जो हर क्षड़ ठंडी सांसे भरता हुआ व्‍याकुल रहता है, कुछ लिख पाने के लिए विषय खोजता फिरता है और जब कभी विषय मिल जाता है तो लिख नहीं पाता क्‍योंकि उसका मूड ठीक नहीं, या उसे जु़काम हो गया है और नाक चल रही है - उस आदमी की तरह जो गले में मफलर लपेटे डरता-कांपता घर से बाहर नहीं निकलता कि कहीं हवा न लग जाये और यदि उसे थोड़ी-सी हरारत हो जाये तो डर से उसका खू़न सूखने लगता है, वह बिलखने लगता है और वसीयतनामा लिखने बैठ जाता है। इतना डरो नहीं साथी। अपने ज़ुकाम के बारे में सोचना छोड़ दो। काम करने लगोगे तो तुम्‍हारा ज़ुकाम ठीक हो जायेगा।
 
-निकोलाई आस्‍त्रोवस्‍की                                                                                                                          
   ('जय जीवन' से)                                                                                                                                      

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