गुरुत्वाकर्षण-विहीनता में थोड़ी देर
सड़क, घर -- सब बादलों से भरे हुए थे।
जहाँ कुछ ख़ाली जगहें थीं
वहाँ तारे बैठे-अधलेटे बातें कर रहे थे।
दुखों की पुरानी बस्तियों में संगीत
डेरा डाले हुए था।
आसमान में एक नीली झील थी
जिसमें मछलियाँ और कछुए तैर रहे थे
उड़ने की तरह।
कई किलोमीटर लम्बी कूँचियों से
हम क्षितिज के कैनवास पर
रंगों का मेला रच रहे थे।
फिर गुरुत्वाकर्षण ने कहा,
"अब बस भी करो
मैं आ रहा हूँ।"
सयानों ने पहले ही बताया था हमें
कि सपने, प्यार और कविता की
गुरुत्वाकर्षण-विहीन दुनिया में
बहुत लम्बे समय तक रुके रहने के बाद
आदमी वहीं का होकर रह जाता है,
चाहे भी तो वास्तविकता में
वापस नहीं लौट पाता।
हमने वास्तविकता की दुनिया में रहते हुए
सपने देखे, प्यार किया, कविताएँ लिखीं,
इंसाफ़ के लिए ज़रूरी लड़ाइयाँ लड़ीं
और मनुष्य की तरह बचे रहे।
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(30 Oct 2024)
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