Saturday, July 27, 2024

बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला

 कल जब बेगम साहिबा (यानी बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला) के घर पहुँची तो वो हिन्दी के एक प्रोफे़सर से मिलकर लौटी थीं। जाना किसी और के काम से ही हुआ था और बहुत मजबूरन ही हुआ था वरना तो बेगम साहिबा दावतनामा पाने के बावजूद  वज़ीरे-आज़म की दहलीज़ तक पर  कदम न रखें। 

मैंने पूछा, "कैसी रही?"

बेगम ने फ़रमाया:

"उड़ने के पंख बेच कर दीमक लिए ख़रीद

प्रोफ़ेसरी के साथ बस कमीनगी रही।" 

(चलते-चलते बता दूँ कि बेगम ज़लज़ला इनदिनों हिन्दी के अज़ीमतरीन जदीद शायर मुक्तिबोध के अफ़साने पढ़ रही हैं) 

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