Thursday, February 08, 2024

 

रवींद्रनाथ टैगोर (1916 में प्रकाशित उपन्यास ‘घरे बाइरे’ से कुछ उद्धरण )


“देश की सेवा करने को तैयार हूं, पर देश की वंदना करना देश का सत्यानाश करना है”। 


“(देश की) पूजा करने को मैं मना नहीं करता पर अन्य देशों में जो नारायण है, उसके प्रति विद्वेष रखते हुए यह पूजा किस प्रकार पूर्ण हो सकती है”।


“मेरा विश्वास है कि जो लोग देश को साधारण और सत्य भाव से देश समझकर मनुष्य पर मनुष्यवत श्रद्धा रखकर सेवा और भक्ति का उत्साह नहीं पाते, जो गुल मचाकर, मां कहकर देवी कहकर, मंत्र पढ़कर केवल उत्तेजना की ही खोज में रहते हैं, उनके मन में देश भक्ति का नहीं बल्कि नशेबाजी का ध्यान रहता है”।


“भारतवर्ष यदि कोई वास्तविक वस्तु है, तो उसमें मुसलमान भी मौजूद है”।


“देश से मतलब देश की मिट्टी से नहीं है, बल्कि देश की जनता से है”। 


“केवल गाय को ही अवध्य मानें और भैंस को अवध्य न मानें तो यह धर्म नहीं कोरा कट्टरपन है”।

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