Sunday, February 18, 2024

रक्तपात के दिनों में प्यार


रक्तपात के दिनों में प्यार 

शहर की सुनसान सड़कों पर

हत्यारों के बूटों की धमक

गूँजती रहती है। 

वधस्थल पर कविता की गर्दन पर

गिरता है एक कुल्हाड़ा। 

ऐसे ही दिनों में अचानक किसी एक रात

खिड़की के शीशे से आती

चाँदनी के पीले मद्धम आलोक में

एक थके हुए हृदय पर

गिरती है 

एक परछाईं ज्वरग्रस्त काले गुलाब की। 

गहरी नींद में सुनाई देती है

डाकिये की साइकिल की

घण्टी की आवाज़। 

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(18 Feb 2024)


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