रक्तपात के दिनों में प्यार
शहर की सुनसान सड़कों पर
हत्यारों के बूटों की धमक
गूँजती रहती है।
वधस्थल पर कविता की गर्दन पर
गिरता है एक कुल्हाड़ा।
ऐसे ही दिनों में अचानक किसी एक रात
खिड़की के शीशे से आती
चाँदनी के पीले मद्धम आलोक में
एक थके हुए हृदय पर
गिरती है
एक परछाईं ज्वरग्रस्त काले गुलाब की।
गहरी नींद में सुनाई देती है
डाकिये की साइकिल की
घण्टी की आवाज़।
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(18 Feb 2024)
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