Tuesday, December 27, 2022


जिस दिन हम सत्ता के आगे झुकने वालों से, फासिस्ट हत्यारों के हाथ चूमकर उनसे ईनाम और वजीफा लेने वालों से, हत्याओं और जनसंहार के मौसम में साहित्य के रंगारंग जलसों में गाने-बजाने वालों से, पतित छद्मवामियों, लिजलिजे लिबरलों, निठल्ले कायर बकवासियों, अवसरवादियों, कैरियरवादियों, बौद्धिक लफंगों और साहित्यिक दुराचारियों व दल्लों से हद दरजे की नफ़रत का खुला इजहार करना और इन सबको नंगा करते रहना बंद कर दें, तो समझ लेना कि हमने भी ज़मीर का सौदा कर लिया, समझ लेना हम भी थक गये, चुक गये या बिक गये! तब समझ लेना कि हमने भी सपने देखना बंद कर दिया और सफल सद्गृहस्थ बन गये!

जब सड़कों पर अत्याचार और बर्बरता की बारिश हो रही हो और हमारी कलम उसके ख़िलाफ़ लोगों से खुलकर बात करने की जगह शब्दों की अमूर्त रेशमी कताई-बुनाई करती दीखे तो समझ लेना कि हम भी पक्षत्यागी बन चुके हैं और भ्रम का कुहासा फैलाने वाले उन बौद्धिकों में शामिल हो चुके हैं जो किसी भी अत्याचारी सत्ता के वर्चस्व (हेजेमनी) के प्रमुख अवलंब होते हैं! 

यह भूलना नहीं होगा कि इंसाफ़ की लंबी ऐतिहासिक लड़ाई में खंदकों से मोर्चा छोड़कर भागने वाले सांस्कृतिक-बौद्धिक सेनानी अन्याय की सत्ता के पक्ष में खड़े सबसे ख़तरनाक बहुरूपिये होते हैं क्योंकि वे शब्दों का मायावी इंद्रजाल रचकर भविष्य के प्रति लोगों की उम्मीदों को दीमक की तरह चाट जाते हैं, उनकी इतिहास-दृष्टि को नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं और उनकी संकल्प-शक्ति और युयुत्सा को क्षरित-विघटित कर देते हैं! मुख्यतः ऐसे ही कायर, गद्दार बौद्धिकों के ज़रिए अत्याचारी और फ़ासिस्ट शासक तक जनता से यह 'सहमति' (कंसेंट) हासिल कर लेते हैं  कि वे उसपर शासन करते रहें क्योंकि किसी भी क्रान्तिकारी आमूलगामी बदलाव के प्रोजेक्ट के बारे में सोचना निरर्थक है, अव्यावहारिक है, असंभव है, एक यूटोपिया है! 

ऐसे मायावी शैतानों के साथ जो उदारता का बर्ताव करते हैं, समझ लीजिए, कल वे भी उन्हीं की महफ़िलो में पाये जायेंगे! 

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(27 Dec 2022)

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