Sunday, August 01, 2021

शहीद ऊधम सिंह ....



शहीद ऊधम सिंह उर्फ़ राम मोहम्मद सिंह आज़ाद की क्रांतिकारी धर्मनिरपेक्षता और विषमता-मुक्त आज़ादी के सपनों की विरासत ज़िन्दाबाद!

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ऊधमसिंह भारत के क्रांतिकारियों के नक्षत्रमंडल का  एक चमकता सितारा थे I उनका जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाने के एक बेहद गरीब दलित सिख परिवार में हुआ था I बचपन में ही माता-पिता के निधन के बाद उनकी परवरिश उनके बड़े भाई के साथ एक अनाथालय में हुई I 1917 में उनके बड़े भाई का भी निधन हो गयाI इसके बाद ऊधमसिंह अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे I 1919 में जलियाँवाला बाग नरसंहार हुआ और ऊधम सिंह ने उसीसमय हर कीमत पर इसका बदला लेने की शपथ ली I

 1924 में वह गदर पार्टी से जुड़ गए I गदर पार्टी का गठन अमेरिका और कनाडा में रह रहे आप्रवासी भारतीयों ने 1913 में  भारत में क्रांति भड़काने के लिए किया था I भारतीय स्वाधीनता संग्राम में ग़दर पार्टी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी और आगे चलकर अधिकांश गदरी बाबा कम्युनिस्ट आन्दोलन में शामिल हो गए थे I  क्रांति के लिए पैसा जुटाने के मकसद से ऊधम सिंह ने दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा भी की I कहा जाता है कि भगत सिंह के कहने के बाद वे 1927 में भारत लौट आये I अपने साथ वे 25 साथी, कई रिवॉल्वर और गोला-बारूद भी लाए थे I जल्द ही अवैध हथियार और गदर पार्टी के प्रतिबंधित अखबार 'गदर की गूँज' की प्रतियाँ रखने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया I उन पर मुकदमा चला और उन्हें पाँच साल जेल की सज़ा हुईI

जेल में ही ऊधमसिंह को चंद्रशेखर आज़ाद की हत्या और भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू की फाँसी की खबर मिली I इसके बाद उपनिवेशवादी जालिमों को कड़ा सन्देश देने का ऊधमसिंह का संकल्प और फौलादी हो गया ! जेल से रिहा होने के बाद, कड़ी पुलिस चौकसी के बावजूद, वह कश्मीर यात्रा के दौरान गायब हो गए और जर्मनी होते हुए ब्रिटेन जा पहुँचे ! वहाँ सुव्यवस्थित तैयारी के बाद, 13 मार्च, 1940 को कैक्सटन हॉल में हो रही एक मीटिंग में उन्होंने माइकेल ओ'डायर को गोली मारकर 21 साल पहले ली गयी अपनी शपथ को अंजाम तक पहुँचाया I 4 जून 1940 को उन्हें ब्रिटिश अदालत ने ह्त्या का दोषी ठहराया और 31 जुलाई, 1940 को लन्दन के पेंटनविले जेल में उन्हें फाँसी दे दी गयी I

भगतसिंह की पीढ़ी के क्रांतिकारियों की ही तरह ऊधमसिंह भी एक विचारशील क्रांतिकारी थे I भगतसिंह की ही तरह ऊधमसिंह भी तर्कशील नास्तिक थे I 1930 के दशक में राष्ट्रीय राजनीति में साम्प्रदायिकता के उभार से वह बहुत क्षुब्ध और चिंतित रहते थे I बचपन में ही उन्होंने गरीबी की कठिन मार झेली थी और दलित पृष्ठभूमि से आने के चलते जातिगत पार्थक्य, भेदभाव और उत्पीड़न से भी परिचित थे I इन अनुभवों ने ऊधमसिंह को एक रेडिकल सेक्युलर और जाति-व्यवस्था-विरोधी क्रांतिकारी बनाया था I उनका स्पष्ट मानना था कि भारतीय जनता साम्प्रदायिक शक्तियों की विभाजनकारी नीतियों को नाकाम करके और जातिगत भेदभाव को दूर करके इस्पाती एकजुटता बनाने के बाद ही गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हो सकती है ! अन्यथा उसे सच्ची आज़ादी नहीं मिल सकेगी ! अपनी इसी सोच के प्रतीक के तौर पर उन्होंने अपना नाम बदलकर उन्होंने राम मोहम्मद सिंह आज़ाद रख लिया था जो तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक था I वे न सिर्फ इस नाम से चिट्ठियाँ लिखते थे बल्कि यह नाम उन्होंने अपनी कलाई पर भी गुदवा लिया था I ऊधमसिंह भी एक ऐसे आज़ाद भारत का सपना देखते थे जिसमें आम मेहनतक़श जनता के हाथों में सत्ता हो, न कि मुट्ठी भर अमीरों के हाथ में ! ऊधमसिंह के सपनों का भारत भी धार्मिक कट्टरपंथियों और जातिगत भेदभाव से मुक्त भारत था ! 

भगतसिंह और ऊधमसिंह के सपनों को टालने की कीमत आज हम चुका रहे हैं ! '47 में मिली आज़ादी देशी पूँजीपतियों की बुर्जुआ जनवादी सत्ता की स्थापना थी, यह बात अब साफ़ हो चुकी है ! लोकतंत्र की सारी कलई उतर चुकी है ! नव-उदारवाद के दौर में सत्ता के ज्यादा से ज्यादा निरंकुश होते जा रहे चरित्र को देखने के बाद अब हम सड़कों पर हिन्दुत्ववादी फासिस्टों के खूनी नंग नाच को देख रहे हैं ! देश को खून का दलदल बनने से बचाने का अब बस एक ही रास्ता है और वह है, व्यापक मेहनतक़श अवाम को एकजुट और संगठित करके इंक़लाब के कारवाँ को फिर से आगे गति देना ! लेकिन फासिस्टों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए हमें आम जनता के बीच के धार्मिक बंटवारों और जातिगत बंटवारों के विरुद्ध, जाति-धर्म की राजनीति के हर रूप के ख़िलाफ़, एक जुझारू सामाजिक आन्दोलन खड़ा करना होगा ! तभी ऊधमसिंह और भगतसिंह जैसे हमारे महान क्रांतिकारियों की शहादत का लहू रंग लाएगा ! बिना फैसलाकुन हुए, बिना बहादुरी, दृढसंकल्प और कुर्बानियों के, शोषण और हर प्रकार के अन्याय से मुक्त समाज किसी रात इतिहास सांता क्लॉज़ का भेस धरे हमारे-आपके दरवाज़े नहीं पहुँचा जाएगा I जो समाज ऐसे युवा मुक्ति-सेनानी नहीं पैदा कर सकता, वह गुलामी के खून और गंद के दलदल में पड़े रहने को अभिशप्त होता है !

1 Aug 2021

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