Tuesday, June 08, 2021

एक चुगले की मौत



 एक चुगले की मौत

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बहुत दिनों पहले की नहीं, कुछ ही दिनों पहले की बात है। पूरब के एक छोटे से शहर में एक चुगला रहता था। चुगला समझते हैं न! चुगलखोर, जिसे भोजपुरी में कुटना भी कहते हैं। 

उस चुगले के लिए चुगली पचनोल और कायम चूर्ण -- दोनों का काम करती थी। बिना चुगली किये न उसका खाना पचता था, न पेट साफ़ होता था। सो वह दिन भर इधर-उधर फुदकते हुए लगावन-बझावन का काम करता रहता था। वह सिर्फ़ इधर की उधर ही नहीं करता था, सिर्फ़ नमक-मिर्च-चाट मसाला ही नहीं मिलाता था, बल्कि किसी के बारे में एकदम हवा में से तथ्य पैदा करके उसके किसी विरोधी को सुना देता था और कोई भी गढ़ा गया संवाद किसी के मुँह में डालकर किसी को सुना देता था और फिर सुलगती अदावतों और विवादों की भड़कती ज्वालाओं का आनन्द लिया करता था। 

पहले वह एक निठल्ला बहेल्ला था तब चुगलई-कुटनई वह न सिर्फ़ ड्यूटी की तरह करता था, बल्कि ओवरटाइम भी करता था। फिर खानदानी विरासत से वह धनी हो गया और राजधानी में आकर  धंधा करने लगा और बुद्धिजीवी का ओवरकोट पहनकर घूमने लगा। चुगलखोरी के लिए उसे एक नया, विशाल, संभावना-संपन्न बाज़ार और गुणी ग्राहक मिल चुके थे। चुगला बहुत ख़ुश था।

लेकिन अब कथा का क्लाइमेक्स सुनिए।  दर्शन शास्त्र बताता है कि जीवन की आम गति में संयोगों की भी अपरिहार्य भूमिका होती है। एक दिन चुगला हमेशा की तरह अपने मिशन पर निकला और काफ़ीहाउस से लेकर कई बैठकख़ानों के चक्कर लगाये। उसदिन कुछ ऐसा इत्तेफ़ाक़ था कि अलग-अलग किस्म की झंझटों-परेशानियों में मुब्तिला होने के कारण किसी ने भी चुगले की बातों में दिलचस्पी नहीं ली। चुगले ने अपनी बातों में और नमक-मिर्च-मसाला मिलाया, और नींबू निचोड़ा, पर उसकी कोई तरकीब काम नहीं आती। किसी ने उसकी बातों पर कान न दिया। 

रात में थका-हारा चुगला जमनापार अपने घर पहुँचा और आरामकुर्सी पर पसर गया। पत्नी ने उसे कभी इतना उदास-मायूस नहीं देखा था। वह जल्दी से उठी और चुगले को पानी का गिलास थम्हाकर चाय बनाने किचन में चली गयी ।

चाय का कप लेकर जब वह वापस आई तो चीख पड़ी। कप हाथ से गिर कर टूट गया। चुगला आरामकुर्सी में लुढ़का मरा पड़ा था।

8 Jun 2021





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