Thursday, May 20, 2021

एक ठो और किस्सा सुनिए !


एक ठो और किस्सा सुनिए ! 

हमारे बाबा के एक संघाती बताते थे ! गाँव में एक बहुत जालिम ज़मींदार था I लगान या क़र्ज़ का सूद नहीं देने पर उलटा टाँगकर पिटवाता था, घरों में घुसकर बहू-बेटियों की इज़्ज़त लूटता था I

उसका एक ख़ास नौकर था -- भगेलू I  भगेलू तीन पुश्तों के क़र्ज़ के बदले ठाकुर की गुलामी करता था, सेवा-टहल करता था, मालिश करता था, नहलाता-धुलाता था I वह पशुवत विनम्र था, छाया की तरह ठाकुर के साथ लगा रहता था I सभी जानते थे कि ठाकुर ने भगेलू की पत्नी की भी इज़्ज़त लूटी थी  और भगेलू के बाप को उलटा टाँगकर इतना पीटा था कि वह हफ़्ते भर बाद मर गया था I पर भगेलू ड्योढ़ी का एक वफ़ादार नौकर था, यह सभी जानते थे I

चैत महीने की एक रात की बात है I ठाकुर की ड्योढ़ी पर अचानक ज़बरदस्त शोर उठा I लोग पहुँचे तो ठाकुर एक कम्बल में लिपटा 'हाय-हाय' कर रहा था और भगेलू को जमकर माँ-बहन की गालियाँ दे रहा था I सामने भगेलू मार-पिटाई से बेहाल, लस्त-पस्त ज़मीन पर पड़ा हुआ था, पर उसके चेहरे पर मार-पिटाई के दर्द के साथ एक अभय स्मित मुस्कान थी I

पता यह चला कि ठाकुर साहब जब मालिश का आनंद लेते हुए पेट के बल लेटे हुए  उनींदे-से हो रहे थे, उसी समय भगेलू ने ठाकुर साहब के पिछवाड़े केरोसिन तेल का आधा कनस्तर उड़ेलकर माचिस लगा दी I ठाकुर साहब का पूरा पिछवाड़ा, कमर के नीचे बुरी तरह जल गया था I

सारे नौकर और मुसाहिब भगेलू को पीट-पीट कर पूछ रहे थे कि 'बता, तूने ऐसा क्यों किया !' काफ़ी देर तक चुप रहने के बाद भगेलू ने मुस्कुराते हुए ठाकुर साहब को देखते हुए कहा,"मालिक, तुम आदमी को जितना भी जिनावर बनाओ, उसके भीतर का आदमी ज़िंदा रहता है ! अगर वह कुछ भी नहीं कर पाता और एकदम बेबस महसूस करता है तो एक दिन ज़ुलमी के चूतड़ में दाँत गड़ा देता है, या फिर मौक़ा मिलते ही उसके पिछवाड़े आग लगा    देता है ! स्साले, अब तुम अपने नाती-पोतों को भी बताते रहना कि तुम्हारे गाँड़ में आग किसने लगाई !"

भगेलू का जो हुआ, वो तो आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं , पर चलिए, आज की बातें करें !  रंगा-बिल्ला और कनफटा सोचते हैं कि ये जो लाखों लोग आक्सीजन, बेड, वेंटिलेटर, दवाओं के अभाव में तड़प-तड़पकर मर रहे हैं, करोड़ों मेहनतक़श जो सड़कों पर भूख, बेहाली और बेबसी में मर रहे हैं, ये उनका भला क्या बिगाड़ लेंगे, क्योंकि क्रांतिकारी बदलाव की कोई संभावना तो अभी है नहीं; वे यह नहीं जानते कि बेबसी, ज़ुल्म और घुटन की इन्तहां हो जाने पर दबे-कुचले लोग अगर और कुछ नहीं कर पाते तो जालिमों का पिछवाड़ा तो जला ही देते हैं ! इतिहास पलटकर देखिये न ! अत्याचारियों के चूतड़ों में धँसे हुए अवाम के दाँतों के निशान या जालिमों के जले हुए पिछवाड़े आपको  एकदम साफ़ नज़र आ जायेंगे ।

20 May 2021


No comments:

Post a Comment