कम्युनिस्ट क्रोधावेश में कोई कदम नहीं उठाते।
आम तौर पर वे पतित तत्वों, क्रान्ति के भगोड़ों और सत्ता के 'ट्रोज़न हॉर्सेज' द्वारा व्यक्तिगत तौर पर दी जाने वाली गालियों और किये जाने वाले कुत्सा-प्रचारों पर ध्यान दिये बिना अपना काम करते रहते हैं।
लेकिन प्रतिक्रिया और विपर्यय के सड़ांध भरे कालखण्डों में जब चारों ओर ज़हरीले कीड़े-मकोड़े किलबिलाने लगते हैं तो कई बार कुत्सा-प्रचार की संगठित और परोक्षत: सत्ता-प्रायोजित कार्रवाइयाँ मार्क्सवाद और क्रान्ति के मिशन के प्रति ही जनता में अविश्वास, संदेह और निराशा पैदा करने लगती हैं!
तब क्या किया जाना चाहिए?
तब भी क्रान्तिकारियों को क्रोधावेश में नहीं आना चाहिए, उद्विग्नता और अधैर्य का शिकार नहीं होना चाहिए, शान्तचित्त और धैर्यवान बने रहना चाहिए, स्तरहीन पतित और भगोड़े तत्वों के मुँह लगकर अपने स्टैंडर्ड से नीचे नहीं उतरना चाहिए!
बस, शांत मन से, विवेकपूर्वक सोच-विचार कर, निर्णय लेना चाहिए और यथासमय यथोचित कार्रवाई कर देनी चाहिए।
ऐसा न करना उदारतावाद भी हो सकता है।
उदारता और सहिष्णुता इस हद तक भी नहीं होनी चाहिए कि आपके बूटों की धमक सुनते ही भागकर अँधेरे कोने में छिप जाने वाले तिलचट्टे कूड़े की टोकरी से गंद में लिथड़े हुए आपके ऊपर छलाँग मारने की हिमाकत करने लगें!
21 May 2021
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