जी, जर्मनी के बाद नात्सीवादी बर्बरता और कहर का सबसे बड़ा माडल भारत में लागू होने की शुरुआत हो चुकी है। प्राक्कथन के बाद अभी यह पहला अध्याय है। वही डिटेंशन सेण्टर्स, ठसाठस भरी जेलें, राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाना, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर आतंक राज, फर्जी मुठभेड़ें, पंगु न्यायपालिका, समाप्तप्राय बुर्जुआ विपक्ष, मज़दूरों का बर्बर दमन, घुटनों के बल बैठे हुए सोशल डेमोक्रैट्स, श्मशानी सन्नाटा और गलियों में, सड़कों पर बहता लहू ... ...
जिन्हें लड़ना है और उसकी हर क़ीमत चुकानी है, उनकी तैयारी अभी बहुत पीछे है। फिर भी लड़ना तो होगा ही, इसलिए कि और कोई विकल्प नहीं है। फासिस्ट बर्बरता के विनाश के बाद ही इतिहास आगे डग भर सकेगा। इतिहास के रथ को एक बार फिर खून के दलदल से गुजरना ही होगा । फ़ासिज़्म का नाश इस बार पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की ऐतिहासिक मृत्यु का उदघोष भी होगा ।
फ़ासिज़्म के विरुद्ध युद्ध की तैयारी दरअसल पूंजी और श्रम के शिविरों के बीच विश्व-ऐतिहासिक महासमर के दूसरे चक्र की तैयारी का ही एक हिस्सा है। फ़ौरी लड़ाइयों को लड़ते हुए इस दूरगामी परिप्रेक्ष्य को हमेशा ध्यान में रखना होगा।

 
 
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