साथियो, मुझे अभी-अभी एक साध्वी द्वारा प्रेषित देश के नाम सन्देश एक पर्चे के रूप में मिला है जिसे मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक, सभी संभव माध्यमों से पहुँचाने के लिए आपके सामने प्रेषित कर रही हूँ !
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जागो हिन्दू जागो ! जागो, धर्म खतरे में है ! अगर अब भी न सम्हले तो सर्वनाश सुनिश्चित है !
भक्त जनो !
कल ईसाई पंचांग की तिथि 5 अगस्त को (हिन्दू पंचांग के हिसाब से भाद्रपद, कृष्णपक्ष की द्वितीया को) मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचन्द्र की पवित्र-पावन जन्मस्थली अयोध्या में उनके मंदिर का भूमिपूजन और शिलान्यास देश के आदरनीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के हाथों होने जा रहा है ! आप अति-प्रसन्न और रोमांचित होंगे, लेकिन रुकिए, और ध्यानपूर्वक मेरी बातें सुनिए और अगर ये धर्मसम्मत न हों तो इनपर कान न देकर मुझ साध्वी को धिक्कारिये ! लेकिन अगर मेरी बातें तर्कसम्मत और युक्तिसंगत हों तो फिर सोचिये कि क्या हमारा हिन्दू धर्म रसातल की ओर जा रहा है ? क्या कुछ छद्म हिन्दू संत और धर्म के व्यापारी हमसभी को ईश्वरीय महाकोप का शिकार बनाकर रौरव नरक का वासी बनाना चाहते हैं ?
सबसे पहले आप मेरे इस प्रश्न का उत्तर दीजिये कि विष्णु-अवतार भगवान श्रीराम को 'मर्यादा-पुरुषोत्तम' क्यों कहा जाता है ? मैं बताती हूँ ! इसीलिए कहा जाता है कि उन्होंने हर हाल में ब्राह्मण धर्म या सनातन धर्म की मर्यादा की रक्षा की ! उन्होंने वर्णाश्रम धर्म के अनुपालन के लिए कठोरतम निर्णय लिए और अपने क्षत्रिय वर्ण के कर्तव्यों का पालन किया ! शूद्रों और स्त्रियों को धर्माचरण से विचलित होते ही उन्होंने उन्हें कठोर रूप से दण्डित किया ! उनकी अर्द्धांगिनी सीता जब रावण-वध के बाद अशोक-वाटिका से आयीं तो उन्होंने उनको धधकती अग्नि में प्रवेश करा दिया और अग्निदेव ने सीता के बदले उन्हें जो छाया-सीता दी, उसे भी लोकापवादों से बचने के लिए गर्भवती होने के बाद भी जंगल में भेज दिया ! यही नहीं, उत्तराधिकारी के रूप में लव-कुश की प्राप्ति के बाद सीता को धरती में समा जाना पड़ा क्योंकि भगवान श्रीराम सभी युगों की हिन्दू स्त्रियों को यह सन्देश देना चाहते थे कि स्त्रियाँ अनजाने भी यदि धर्म-मर्यादा की लक्षमण-रेखा का उल्लंघन करेंगी तो उन्हें इसी जन्म में अपरिमित कष्ट उठाकर पाप-प्रक्षालन करना पडेगा ! प्रेम-प्रस्ताव रखने की निर्लज्जता दिखाने पर उन्होंने अनुज लक्षमण से शूर्पनखा की नाक कटवा दी ! हाँ, शूद्र अगर दास-मर्यादा में रहकर आचरण करते थे तो प्रभु उनपर कृपालु हो जाते थे ! जैसे पाँव पखारने वाले केवट को उन्होंने गले से लगा लिया और शबर जाति की स्त्री के जूठे बेर भी खा लिए ! उनकी कृपा के बाद भी दोनों शूद्र ही बने रहे, ताकि धर्म की मर्यादा न टूटे, पर हाँ, स्वर्ग में स्थान-प्राप्ति का वचन उन्हें अवश्य प्राप्त हुआ !
लेकिन अब प्रभु के धर्माचरण का दूसरा उदाहरण देखिये ! शूद्र शम्बूक जब अपनी औकात भूलकर, धर्म और वर्ण की मर्यादाओं को धता बताते हुए धर्म-शास्त्रों का अध्ययन और तपस्या करने लगा तो उन्होंने एक क्षण भी सोचे बगैर उसका सर काट लिया ! भक्त जनो ! शास्त्रों का अवलोकन करो ! हिन्दू धर्म की मर्यादा यही है कि पंचम या अस्पृश्य वर्ण के साथ ही शूद्र भी देव-मंदिरों से काफी दूरी पर रहे, उसके कानों में वेद-मन्त्र नहीं पड़ने चाहिए और देव-मंदिरों के भूमि-पूजन या शिलान्यास में तो उसकी अशुभ-अपवित्र उपस्थिति के बारे में एक सच्चा हिन्दू सोच तक नहीं सकता !
अब आप ही सोचिये, यह कितना बड़ा अनर्थ और धर्म-विरोधी कृत्य होने जा रहा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के मंदिर का भूमि-पूजन और शिलान्यास एक महाशूद्र के हाथों होने जा रहा है !! घोर अनर्थ !! सभी जानते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के घांची तेली हैं, जो तेलियों में भी एक नीच कोटि है ! ठीक है, हम इस देश के संविधान का आदर करते हैं जो एक अस्पृश्य को राष्ट्रपति और शूद्र को प्रधान मंत्री बनाने का अधिकार देता है ! हम अपने प्रधान मंत्रीजी पर असीम श्रद्धा भी रखते हैं, उनका आदर भी करते हैं, लेकिन संविधान से देश चलता है, धर्म नहीं ! धर्म वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण-ग्रंथों, संहिताओं, पुराणों और मनु-स्मृति से ही चलेगा ! यह हमारी धर्म की मर्यादा का सवाल है भक्त जनो ! अब आप ही सोचिये, यह कितना बड़ा अनर्थ हो रहा है !!
एक और भयंकर अशुभ बात है ! हिन्दू शास्त्रों के हिसाब से विधुर अर्धखंडित व्यक्ति माना जाता है I शास्त्रों में ऐसे व्यक्तियों को केवल निजी हित में अनुष्ठान करने की अनुमति दी गई है I ऐसे व्यक्ति सामाजिक या पारिवारिक अनुष्ठान नहीं कर सकते I लेकिन जिस व्यक्ति ने पत्नी को त्याग दिया है, उसे पूर्ण खंडित माना जाता है. ऐसा व्यक्ति न पारिवारिक अनुष्ठान कर सकता है, न सामाजिक, उसे व्यक्तिगत यानी अपने हित में भी अनुष्ठान करने की अनुमति नहीं है I वह केवल और केवल प्रायश्चित कर सकता है I अब आप ही सोचिये मोदीजी न सिर्फ़ अतिशूद्र हैं, बल्कि उन्होंने अपनी पत्नी का परित्याग भी किया है ! क्या ऐसा व्यक्ति प्रभु श्रीराम के मंदिर का भूमिपूजन करेगा तो समूचे भारतवर्ष पर विपत्ति के बादल नहीं फट पड़ेंगे ?
और बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं है ! इस प्रकल्प में अहम भूमिका निभाने वाले योगी आदित्यनाथ नाथ पंथ के सिरमौर हैं ! यह कौन नहीं जानता कि सिद्धों और नाथों को हमारा सनातन धर्म मान्यता नहीं देता क्योंकि वे वर्णाश्रम सहित हिन्दू धर्म के कई आचारों-अनुष्ठानों का पालन नहीं करते ! नाथपंथियों द्वारा शिव की आराधना के बावजूद शैवों की मुख्य धारा भी उन्हें मान्यता नहीं देती ! इधर भले कम हो गए हों, पर 25-30 वर्षों पहले तक गाँवों में आपने भी ऐसे कनफटा गोरखपंथी योगियों के सारंगी बजाते घूमते देखा होगा जो शूद्र, अस्पृश्य या मुसलमान, यानी म्लेच्छ और यवन तक हुआ करते थे ! ऐसे किसी पंथ के सिरमौर को मर्यादा-पुरुषोत्तम की जन्म-स्थली के पास भला फटकने तक कैसे दिया जा सकता है ? -- आप ही बताइये ! यह बात अलग है कि संविधान को मानते हुए हम मुख्य मंत्री के रूप में योगीजी का सम्मान करते हैं, पर हमारे धर्माचरण में शासन या संविधान की भला कैसी दख़ल ? सुनने में तो यह भी आ रहा है कि राम-मंदिर की नींव में किसी कथित रामभक्त मुसलमान के हाथों भी मिट्टी डलवाई जायेगी और भूमिपूजन एवं शिलान्यास के कार्यक्रम में म्लेच्छों के सुन्नी वक्फ़ बोर्ड को भी निमंत्रित किया गया है ! क्या ऐसा मंदिर भगवान श्रीराम का पवित्र मंदिर हो सकेगा ? -- कदापि नहीं !
भक्तजनो! मैंने 32 वर्षों तक हिन्दू धर्म-ग्रंथों का अध्ययन किया है ! उस सुपुष्ट आधार पर मेरी यह स्पष्ट सम्मति है कि राम मंदिर का भूमिपूजन और शिलान्यास गोत्र, वेद, उपवेद, प्रवर और शाखासूत्र की भली-भांति जाँच-परख के बाद किसी पवित्र, ऋषितुल्य ब्राह्मण के हाथों ही होना चाहिए ! यूँ तो ब्राह्मणों के 49 या उससे भी अधिक गोत्र हैं पर शतपथ ब्राह्मण और महाभारत को मिलाकर, आंगिरस, भार्गव,आत्रेय,काश्यप,वशिष्ठ,अगस्त्य,कौशिक,गौतम, भारद्वाज,जमदग्नि,विश्वामित्र,पुलस्ति, पुलह और क्रतु -- ये चौदह मूल गोत्र हैं जो सप्तर्षि और अन्य ऋषियों की वंशज-परम्परा हैं I सबसे उचित यह होता कि भूमिपूजन आंगिरस, भारद्वाज या वशिष्ठ गोत्र के किसी चतुर्वेद-ज्ञाता ब्राह्मण के हाथों होता ! वैसे भी वशिष्ठ भगवान राम के रघुकुल के कुलगुरु थे I गुरु तो विश्वामित्र भी थे, पर वह पूर्व में क्षत्रिय राजा थे जो तपस्या करके ब्रह्मर्षि बने थे ! और पवित्रता के बावजूद काश्यप ब्राह्मण से इसलिए नहीं करवाया जा सकता क्योंकि राम-शत्रु और माँ सीते का अपहर्ता रावण जिस देवगन गोत्र का था, वह काश्यप गोत्र से ही निकला था ! लेकिन काम जब इतना महान और पवित्र है तो बात इतने पर ही ख़तम नहीं होगी ! स्मृति-पुराणों में ब्राह्मणों के आठ भेद बताये गए हैं -- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय,अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि ! इनमें मात्र तो वे होते हैं जो ब्राह्मण धर्म का किसी रूप में पालन नहीं करते, मांस-मदिरा आदि खाते-पीते हैं, अपने से नीचे वर्ण के लोगों की बराबरी में बैठते हैं, आदि-आदि ... ! पवित्रता की दृष्टि से भूमिपूजन और शिलान्यास ऋषिकल्प, ऋषि या मुनि ब्राह्मण के हाथों ही होना चाहिए !ध्यान रहे कि वह ब्राह्मण अगर विन्ध्योत्तरवासी हो तो पञ्चगौड़ों यानी (सारस्वत,कान्यकुब्ज, मैथिल, गौड़ व उत्कल ) में से सारस्वत या कान्यकुब्ज हो, पर मांसभक्षी मैथिल, बंगीय या उत्कल ब्राह्मण न हो, शाकद्वीपीय या मग तो कदापि न हो
जिनके पूर्वज ईरान से आने के कारण हीन माने जाते हैं ! उचित तो यही होगा कि सरयूतट पर यह पुनीत कर्म किसी सरयूपारीण ब्राह्मण के हाथों संपन्न हो ! अगर विन्ध्य-दक्षिणवासी किसी ब्राह्मण (यानी कर्नाटक, तैलंग, द्रविड़, गुर्जर और मराठी ) के हाथों यह कार्य संपन्न होना हो तो देशस्थ मराठी और कोंकणी सारस्वत के हाथों हो सकता है लेकिन चितपावन ब्राह्मण के हाथों कत्तई नहीं, क्योंकि ये चितपावन उन चौदह यहूदियों के खानदान से आते हैं जो सहस्त्राब्दी से भी बहुत अधिक पहले कोंकण के समुद्र तट पर उतरे थे ! (हमारी-आपकी चिंता तो इस बात की होनी चाहिए कि जिस आर.एस.एस. के झंडे तले राम मंदिर की पूरी मुहिम चलती रही है उसपर शुरू से आजतक चितपावन ब्राह्मणों का ही वर्चस्व स्थापित रहा है ! धिक्कार है उन श्रेष्ठ-कुल ब्राह्मणों को जो इन हीन ब्राह्मणों की अधीनस्थता को स्वीकार करके हिन्दू-धर्मोंन्नति का स्वप्न देखते रहे हैं !) गुर्जर, तैलंग और कर्नाटक ब्राह्मण भी शुद्धता की दृष्टि से विवादास्पद होंगे ! इनमें से और द्रविड़ ब्राह्मणों में से चुनते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह श्रीवैष्णव सम्प्रदाय से ही हो, स्मार्त या माधव सम्प्रदाय से न हो, शैव न हो और शाक्त भी न हो ! कश्मीरी ब्राह्मण तो वहाँ उपस्थित तक नहीं होना चाहिए, क्योंकि उनका उद्गम ही विवादास्पद है और खान-पान-रहन-सहन में वे यवनों-म्लेच्छों के काफी निकट चले गए हैं !
अब अंत में हम सबसे भयंकर बात की चर्चा करेंगे ! पत्नी का त्याग करने वाला खंडित हिन्दू और अतिशूद्र भगवान श्रीराम के मंदिर का भूमिपूजन और शिलान्यास जिस मुहूर्त में करने जा रहा है, वह अत्यंत अशुभ और अनिष्टकारी है ! इस कार्यक्रम को प्रत्यक्ष ही नहीं, दूरदर्शन पर भी देखने-सुनने वालों के परिवार महापाप के भागी होंगे ! करोना तो अभी कुछ भी नहीं है ! मूर्ख शासक प्रजा पर महाप्रलय जैसा कहर बरपा करवाने वाला है I 5 अगस्त को भादों के महीने का कृष्ण पक्ष है, द्वितीया तिथि हैI भाद्रपद में इससमय विष्णु सहित सभी देवता शयन करने चले जाते हैं I 4 अगस्त मंगलवार को पंचक प्रारम्भ हुए हैं, शाम आठ बजकर 45 मिनट पर. पंचक 9 अगस्त की शाम छह बजकर नौ मिनट तक चलेंगे I.पंचक में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है I
निर्माण कार्य खासतौर पर वर्जित किया गया है I जिन लोगों ने ज्योतिष और वास्तु के सबसे बड़े ग्रन्थ भृगु संहिता का अध्ययन किया होगा, उन्हें पता होगा कि पंचक को कितना खराब मुहूर्त कहा गया है I.गरुण पुराण में भी पंचक की चर्चा है । इसे बेहद अशुभ बताया गया है I अयोध्या में इसी बेहद अशुभ मुहूर्त में भगवान राम के मंदिर का शिलान्यास होने वाला है Iभाद्रपद या भादों का महीना भी अशुभ होता है I हरिवंश पुराण के अनुसार, ये महीना देवरात्रि के दूसरे चरण की शुरुआत होता है, इसमें भगवान नारायण गहरी नींद में होते हैं इसलिए इस महीने शुभ कार्य पूरी तरह से वर्जित होते हैं I देवरात्रि की शुरुआत देवशयनी एकादशी से होती है, देवउठनी एकादशी को इस रात्रि की सुबह हो जाती है I तात्पर्य यह कि भादों के महीने में भूमि पूजन और वह भी पंचक में ! यानी अशुभता की भयंकर दोहरी मार !
तो भक्तजनो ! मैंने समस्त सत्यों को यहाँ धर्मशास्त्रों को संदर्भित करते हुए आपको बता दिया है ! मेरी चुनौती है कि कोई भी संघ-समर्थक धर्माचार्य मुझसे शास्त्रार्थ करके मेरी बातों को असत्य प्रमाणित करे ! अगर वह ऐसा कर देगा तो मैं तत्काल सरयू में जल-समाधि ले लूँगी ! आप मंदिर-निर्माण की इस पूरी धार्मिक प्रपंच-लीला पर गहराई से सोचिये अन्यथा इन छद्म-हिन्दुओं के साथ इस जन्म में भीषण अनिष्ट भोगने और फिर परलोक-गमन के बाद नरक में सहस्त्रों वर्षों तक रौरव यातना भुगतते हुए निवास करने के लिए तैयार रहिये !
कल्याणमस्तु,
-- रघुकुलनंदिनी साध्वी कुलेसरा देवी,
सरयूतटवासिनी,
अयोध्या (साकेत),
आर्यावर्त, जम्बूद्वीप, भरतखंड !

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