Saturday, August 22, 2020

ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था

 

ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था

गो सबको बहम साग़र-ओ-वादा तो नहीं था

ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था

गलियों में फिरा करते थे दो-चार दिवाने

हर शख़्स का सद चाक लबादा तो नहीं था

वाइज़ से रह-ओ-रस्म रही रिंद से सोहबत

फ़र्क़ इनमें कोई इतना ज़ियादा तो नहीं था

थक कर यूँ ही पल भर के लिए आँख लगी थी

सो कर ही न उट्ठें ये इरादा तो नहीं था

--- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़



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