सुप्रीम कोर्ट का शाब्दिक अर्थ 'आला दरबार' भी हो सकता है, यानी 'दरबार-ए-ख़ास' !
साहिब ने 'आला अदालत' को 'आला दरबार' बना दिया !
साहिब ! आपका ये 'कॉन्ट्रिब्यूशन' हम कभी नहीं भूलेंगे ! इंसाफ़ की देवी का तराजू और कपडे चुराकर आपके आला दरबार में कोर्निश बजाने वाली 'इंसाफ़ की मूरतों' को भी हम कभी नहीं भूलेंगे !
'इंसाफ़ की मूरत' बन बैठे उन बेज़मीर लोगों, ठगों, जेबकतरों और जी-हुजूरियों को हम कभी नहीं भूलेंगे जिन्होंने हमें बताया कि इंसाफ़ के अंधे होने का मतलब क्या होता है !
भूख से होती मौतों और सड़कों पर बहते मज़दूरों के 'बेआसरा' 'यतीम' लहू के साथ हो रहे 'इंसाफ़' को भी याद रखा जाएगा !
सब याद रखा जाएगा !
ताकि वक़्त आने पर ठीक से हिसाब किया जा सके !
(16मई, 2020)
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