आपको क्या लगता है, चिकारा उर्फ़ जगीरा घर में बैठकर मटर छील रहा है, या पकौड़े तल रहा है ? जो खबरें "मुख्य धारा" की मीडिया से गायब हैं, उन्हें सोशल मीडिया पर ढूँढ़कर पढ़िए ! सच्चाई के आइसबर्ग का टिप तो दीख ही जायेगा ! दिल्ली में लगातार शाहीन बाग़ जैसे धरनों के जाने-पहचाने चेहरों की गिरफ्तारियाँ हो रही हैं ! गिरफ्तारियों और फर्जी मुक़दमों का सिलसिला दिल्ली के अतिरिक्त उ.प्र. में भी जारी है ! इसीबीच जामिया और अलीगढ के कई छात्र गिरफ्तार किये गए हैं ! उ.पू. दिल्ली में जहाँ मुस्लिम बस्तियों पर सुनियोजित बर्बर हमले हुए थे, वहाँ के ज़्यादा परिवार राहत कैम्प उजाड़े जाने के बाद रिश्तेदारों के वहाँ पनाह लिए हुए हैं ! और लॉकडाउन के दौरान इन्हीं परिवारों के युवा सदस्यों को लगातार घरों से उठाया जा रहा है ! कोरोना की महाआपदा का भी योजनाबद्ध ढंग से साम्प्रदायिक इस्तेमाल हो रहा है और इसमें सभी टीवी चैनल और अखबार एकदम एक सुर में बोलते हुए घिनौनी भूमिका निभा रहे हैं ! गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बडे के बाद ऐसे तमाम जन-पक्षधर बुद्धिजीवियों की सूची तैयार है, जिन्हें एक-एक करके सींखचों के पीछे करना है ! उ.प्र. में योगी सरकार दारापुरी जैसे दर्ज़नों मानवाधिकार-कर्मियों को डा. कफील अहमद की ही तरह तमाम फर्जी मुक़दमे लादकर जेल में ठूंसने की योजना पर व्यवस्थित ढंग से काम कर रही है ! डिटेंशन सेंटर्स में लगातार मौतें हो रही हैं, पर उनपर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है ! उलटे, और डिटेंशन सेंटरों के बनने की योजना अभी भी बदस्तूर जारी है !
देश आपातकाल से भी बर्बर, खूनी, अँधेरे दौर में प्रविष्ट हो चुका है, पर पूरे प्रचार-तंत्र को इस तरह संगठित-व्यवस्थित किया गया है कि टुकड़ों में कुछ खबरें अगर छन-छना कर बाहर आ भी जा रही हैं तो लोगों को पूरे परिदृश्य की भयावहता का अंदाजा नहीं लग पा रहा है ! समझ गए न ! चिकारा उर्फ़ जगीरा मटर नहीं छील रहा है, चुपचाप अपने खूनी मंसूबों को अमली जामा पहना रहा है !
मतलब यह कि बिल्ला अपना काम कर रहा है और रंगा अपना काम कर रहा है ! कोरोना की विपत्ति का भी फासिस्ट अपने मंसूबों को अमली जामा पहनाने के लिए आड़ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं ! बाकी, जो अर्थ-व्यवस्था पहले ही तबाह होकर रसातल को जा पहुँची थी, उसके लिए भी आगे लम्बे समय तक कोरोना को ही कारण बताया जाता रहेगा ! आने वाले दिन सचमुच कठिन हैं ! पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से क्या होगा ? संघर्ष के मोर्चे पर फौलादी इरादों के साथ सन्नद्ध होना ही एकमात्र रास्ता है !
(15अप्रैल, 2020)
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हरामियो ! तुम्हें डर नहीं लगता ? आत्मा काँपती नहीं भूखे लोगों पर लाठियाँ बरसाते हुए ? ये जो घरों से हज़ारों और सैकड़ों मील दूर, बेघर-बेबस लोग भूख से लड़ रहे हैं और तुम्हारा कहर झेल रहे हैं, इनका तीसरा नेत्र जब खुलता है तो प्रलय आ जाता है !
सुना है तुमने ? भूखे लोगों की भीड़ ने खाली हाथों से बास्तीय का किला ढहा दिया था और वहीं से फ्रांसीसी क्रान्ति का सूत्रपात हो गया था ! रूस के जार ने रोटी माँगने आयी भूखी जनता पर जब गोलियाँ चलवाई थीं, उसी दिन तय हो गया था कि इस खून का हिसाब एक न एक दिन ज़रूर होगा ! और बारह वर्षों बाद वह हिसाब बोल्शेविक क्रान्ति के रूप में हो भी गया !
मत भूलो, कोई ज़ालिम हुकूमत जब अपने को सर्वशक्तिमान और अजेय समझाने लगती है, उसीसमय उसकी नींव में रिसकर जज़्ब होता अवाम का लहू उसकी बुनियाद को खोखला करने की शुरुआत कर चुका होता है ! तुम्हारे सभी ज़ुल्मों की इन्दराजी हो रही है ताकि वक़्त आने पर सही से हिसाब हो सके !
(15अप्रैल, 2020)
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