Thursday, April 23, 2020

आइन्स्टीन ने कहा था कि दो चीज़ों की कोई सीमा नहीं होती -- मूर्खता की और ब्रह्माण्ड की , जिसमें ब्रह्माण्ड के बारे में वे निश्चित नहीं थे ! अगर वह आज के भारत में होते तो मूर्खता के साथ दुष्टता और बेहयाई -- ये दोनों भी जोड़ देते। यह हमारे देश का सौभाग्य है कि यहाँ भक्त नामकी जो प्रजाति पाई जाती है, उसमें मूर्खता, दुष्टता और बेहयाई की त्रिवेणी देखने को मिल जाती है !

कल मैंने बी.एच.यू. के राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर कौशल किशोर मिश्र द्वारा पोस्ट-चोरी की कथा सुनाई थी ! प्रमाण के तौर पर मैंने पोस्ट-चोर प्रोफ़ेसर की पोस्ट का लिंक भी दिया था और स्क्रीनशॉट भी लगाया था ! बहुतेरे लोगों ने जब पोस्ट-चोर प्रोफ़ेसर को उसकी पोस्ट पर कमेंट करके धिक्कारा तो प्रोफ़ेसर ने दुष्टतापूर्ण बेहयाई का एक नया नमूना पेश किया ! उसने अपनी पुरानी पोस्ट को संपादित करते हुए नीचे यह जोड़ दिया -- "--साभार, अच्छा लगा तो किसी मित्र का उधार ले लिया।लेकिन यह पोस्ट कूडा करकट से अधिक कुछ नहीं है।कूडाकरकट का भी सम्मान होना चाहिए।मैने मित्र के पोस्ट को अपने पेज पर चेंप कर मित्र का सम्मान ही किया।" (यह अंश आज जोड़ा गया है, इसके प्रमाणस्वरूप आप कल डाला गया पोस्ट का स्क्रीनशॉट देख सकते हैं)

अब इस मूर्ख से कोई पूछे कि पोस्ट जब "कूड़ा-करकट" थी तो फिर तुम्हे पसंद क्यों आयी ? कूड़ा-करकट तो शूकर यानी पवित्र वराह योनि के जीव को भाता है ! गो-पुत्र को वह कबसे भाने लगा ? बनारस की भोजपुरी में बेहयाई के ऊपर की तीन कोटियाँ और होती हैं : थेंथरई , गलथेंथरई, और बज्जर थेंथरई ! बनारसी पंडा अब बज्जर थेंथरई पर आमादा हो जाए और गमछा उतार बजरंग बली वाली लाल लंगोट में अस्सी चौराहे पर कापालिक नृत्य करने लगे तो उसका भला कोई क्या कर सकता है ? (प्रसंगवश, इन भक्त गुरू के पेज पर इनकी आचार्य वृहस्पति और शुक्राचार्य जैसी विकट प्रतिभा दर्शाने वाले कई वीडियो हैं जिन्हें आप सुन सकते हैं ! एक वीडियो लाल लंगोट पर लाल गमछा लपेटकर सगरी बनारस नगरिया घूमने की गौरवशाली हिन्दू और बनारसी संस्कृति के महात्म्य पर भी है)

मिसिर पंडीजी बनारस भाजपा के एक शीर्ष नेता और वरिष्ठ संघी भी हैं ! संघ और भाजपा के सभी आयोजनों की शोभा होते हैं ! इनके छात्र जीवन से लेकर अबतक की महिमा कल मेरे अतिरिक्त और भी कई लोग कमेंट बॉक्स में बखान चुके हैं ! आपको प्रसंगवश यह भी बताते चलें कि यही वह प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष महोदय हैं जिन्होंने एम.ए.(राजनीति विज्ञान) की परीक्षा में जो प्रश्नपत्र बनाया था उसमें छात्रों को दो निबंध लिखने थे : पहला, 'कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जी.एस.टी. का स्वरूप', और दूसरा, ' भूमंडलीकरण के प्रथम भारतीय चिन्तक के रूप में मनु की भूमिका' !

आप स्वयं सोच सकते हैं कि भारतीय शिक्षा को विनाश के रसातल में ले जाने के लिए संघ ने कैसे-कैसे गो-पुत्रों और गर्दभ-शिरोमणियों को चुना है ! ये मूर्ख तो हैं ही, सर्वोच्च श्रेणी के निर्लज्ज भी हैं !

मदन मोहन मालवीय एक रूढ़िवादी हिन्दू और दक्षिणपंथी विचारों के राष्ट्रवादी नेता थे ! लेकिन वे विद्वत्ता के घनघोर आग्रही थे और बी.एच.यू. को एक "हिन्दू यूनिवर्सिटी" के रूप में स्थापित करते हुए भी, चुन-चुन कर विद्वानों को वहाँ ले गए थे ! मानविकी, विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय के विद्वानों का बहुमूल्य योगदान रहा है ! अब एक से एक दुर्दांत मूर्ख हिन्दुत्ववादी प्रोफेसरों के गिरोह ने और भाजपा के टट्टू कुलपतियों और प्रशासकों ने इस विश्वविद्यालय की गरिमा को लगभग पूरीतरह से मिट्टी में मिला दिया है और इसे गो-पुत्रों, गदहों और खच्चरों का तबेला बना दिया है !

(22अप्रैल, 2020)


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