एक चोर बीड़ी पीते हुए पटाखे की दूकान में चोरी करने घुसा I फिर उसके साथ क्या हुआ -- बताने की ज़रूरत नहीं है, समझदारों को ! पकड़कर जब थाने गया तो जले हुए पिछवाड़े पर दो-चार डंडे और पड़े अलग से ! कहने का मतलब यह कि चोरी करने के लिए भी थोड़ी समझदारी की आवश्यकता होती है !
भारतीय गौरवशाली संस्कृति में चौर्य-कला भी एक कला मानी गयी है ! शूद्रक के प्रसिद्ध नाटक 'मृच्छकटिकम्' नाटक का चोर शर्विलक आपको याद ही होगा ! पारंपरिक समाज के चोर और सेंधमार आम तौर पर वंचित-निर्धन समाज के लोग हुआ करते थे I चोरी का जन्म इतिहास में स्वामित्व और अमीरी-गरीबी की व्यवस्था के विरुद्ध एक व्यक्तिगत विद्रोह के रूप में हुआ था I इसलिए, सामान्य चोरों के प्रति मेरे मन में कोई दुर्भावना नहीं ! वैसे भी पारंपरिक चोर अब कम होते जा रहे हैं !
जो आधुनिक चोर हैं, जो ऑनलाइन फ्रॉड करके बैंकों से करोड़ों साफ़ कर देते हैं, वे धनी लोगों और इस व्यवस्था के लिए संकट पैदा करते हैं ! उनकी और बड़े चोरों की -- तस्करों की, हवाला कारोबारियों की, शेयर बाज़ार के घोटालेबाजों की दुनिया ही अलग होती है ! उसमें तो बड़े चोर ही आपस में 'चोर-चोर' या 'चोर-सिपाही' का खेल खेलते हैं ! उनमें भी घटिया चोर वे होते हैं जो आम गरीबों के बैंक खातों से रकम उड़ाते हैं, या चिटफण्ड कम्पनी खोलकर उन्हें ठगते हैं ! वे निश्चय ही घृणा के पात्र होते हैं !
पर मुझे तो सबसे घृणास्पद चोर बौद्धिक चोर लगते हैं ! बौद्धिक चोर पापी पेट के लिए, या परिवार की ज़रूरतें पूरा करने के लिए, या थोड़ा सुखपूर्वक जी लेने के लिए चोरी नहीं करते ! जो बौद्धिक चोर होते हैं, प्रायः वे सुविधा-संपन्न जीवन बिताने वाले लोग हुआ करते हैं -- प्रोफ़ेसर होते हैं, पत्रकार होते हैं, वैज्ञानिक होते हैं, यानी बुद्धिजीवी या अकादमीशियन के सामाजिक दर्ज़े में व्यवस्थित ऐसे प्राणी होते हैं जो मीडियाकर होते हैं, दिमाग़ से बाँझ होते हैं, या घोंचू होते हैं ! उनकी आत्मा कवि या लेखक या शोधकर्ता या किसी भी किस्म का विद्वान बनने के लिए मचलती रहती है ! वे अपनी इसी गर्हित-निकृष्ट चाहत के लिए चोरी करते हैं --- अपने बिचारे शोध-छात्रों के शोध अपने नाम छपा लेते हैं (यह समाज विज्ञान, प्रकृति विज्ञान और कला-साहित्य -- सभी क्षेत्रों में धड़ल्ले से होता है) I लेखकों की रचनाएँ हूबहू, या थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ चुरा लेने की कई प्रसिद्ध और चर्चित घटनाओं से शायद आप भी परिचित होंगे ! आपने एक लेखक के घर में रहने वाले उस चूहे की कहानी पढ़ी होगी शायद, जो लेखक बनने के लिए लेखक की डायरी कुतर-कुतरकर खा जाता था I लगातार सिर्फ़ काग़ज़ खाने से वह चूहा जल्दी ही मर गया, पर लेखक नहीं बन सका I एक कनखजूरा एक लेखक के अध्ययन-कक्ष में ताउम्र डेरा जमाये बैठा रहा, कि माहौल के प्रभाव से लेखक बन जाएगा ! पर अंतिम सांस तक वह कनखजूरा ही बना रहा I एक चोर था जो एक लेखक का ओवरकोट, पाइप, छड़ी, हैट और पेन चुराकर लाया पर वह भी लेखक नहीं बन सका Iउस चोर को, चूहे को और कनखजूरे को उनकी भोली-भाली, असफल कोशिशों के लिए माफ़ किया जा सकता है, पर जो पूरी की पूरी रचना ही चुरा लेते हैं, वे बौद्धिक चोर सबसे घृणास्पद चोर होते हैं !
कंप्यूटर और इन्टरनेट के इस डिजिटल युग में कविताओं-कहानियों-लेखों-टिप्पणियों की चोरी इतनी बढ़ गयी है कि पूछिए मत I खाते-पीते-डकारते-पादते-सोते-ऊँघते बैठे-ठाले लोगों को फेसबुक और विभिन्न लोगों के ब्लॉग और वेबसाइट देखते-देखते लेखक या कवि बनने का बुखार चढ़ जाता है ! उनमें से कुछ तो पल्लवग्राही तरीके से इधर-उधर से माल-मसाला लेकर आपस में फेंटने की कोशिश करते हैं, कुछ टुकड़ों में मुहावरे या बिम्ब चुरा लेते हैं और कुछ दूसरी भाषाओं की कविताओं या कहानियों का कुछ भारतीयकरण या हेर-फेर करके अपनी बना लेते हैं ! पर कुछ इतने बज्र-मूर्ख होते हैं कि यह भी नहीं कर सकते I ऐसे लोग पूरी की पूरी रचना ही टीप देते हैं ! फेसबुक की कोई पूरी की पूरी पोस्ट ही उठाकर अपने नाम से चेंप देते हैं ! चोरी के लालच में अंधे होकर ये मूर्ख बौद्धिक चोर यह भी नहीं समझ पाते कि कई बार गूगल महाराज की कृपा से ऐसी चोरियाँ पकड़ में आ जाती हैं !
अभी मेरे साथ एक दिलचस्प घटना घटी I मुझे इतना याद आ रहा था कि डेढ़-दो साल पहले कूपमंडूकों के बारे में मैंने एक पोस्ट लिखी थी, पर तारीख ठीक-ठीक याद नहीं आ रही थी I फिर खोजने के लिए मैंने गूगल किया तो मुझे वह पोस्ट मिल गयी I दो-दो जगह ! 18 दिसंबर,2018 को वह पोस्ट मेरी वाल पर थी ! फिर 20 दिसंबर,2018 को वही पोस्ट हूबहू चुराकर बी.एच.यू. के राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर के.के. मिश्र उर्फ़ कौशल किशोर मिश्र ने अपने पेज पर चेंप दिया है ! अब डेढ़ साल बाद गूगल महाराज की कृपा से मुझे इस चोरी का पता चल रहा है !ये जो प्रोफ़ेसर साहब हैं, संकट मोचन मंदिर के महंत के परिवार के हैं ! धुर-दक्षिणपंथी विचारों के सज्जन हैं ! मोदी के दुर्दांत भक्त हैं ! "भारतीय संस्कृति" के गौरव के प्रचंड पुजारी हैं ! और उनकी "अगाध विद्वत्ता" के बारे में बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं ! उनकी मेधा और व्यक्तित्व से परिचित होने के लिए बेहतर यही होगा कि आप एक बार उनके पेज का भ्रमण अवश्य कर आयें !
प्रोफ़ेसर साहब की समझ का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पूरी पोस्ट या तो उन्होंने पढ़ी ही नहीं, या पढ़कर भी समझी नहीं ! उन्हें लगा कि कूपमंडूकता के बारे में लिखने से लोग कदाचित् उन्हें विद्वान समझ बैठेंगे ! उन्हें यह पता ही नहीं चला कि यह पूरी पोस्ट उनकी विचारधारा के प्रतिकूल है ! ये प्रोफ़ेसर साहब बी.एच.यू. के ही विद्यार्थी रहे हैं और इनके समय के कई लोग आज भी बनारस में पत्रकारिता और अकादमिक जगत में विद्यमान हैं ! प्रोफ़ेसर साहब छात्र-जीवन से ही कितने "मेधावी" रहे हैं, यह बताने वाले उनके साथ के बहुत लोग मिल जायेंगे ! और आज जो छात्र हैं, वे तो उन्हें भुगत ही रहे हैं ! इन "धर्मनिष्ठ", "भारतीय संस्कृति" के उन्नायक प्रोफ़ेसर साहब की इस बेशर्म चोरी के बारे में क्या कहा जाए ? -- शब्द नहीं हैं ! प्रोफ़ेसर साहब तो शायद अपनी शर्म संकट मोचन मंदिर में बजरंग बली के चरणों में चढ़ा आये हैं !
बहरहाल नीचे कमेंट बॉक्स में प्रोफ़ेसर साहब के पेज पर पड़ी पोस्ट का लिंक पड़ा हुआ है ! आप भी अवलोकन कर लीजिये और हमारे विश्वविद्यालयों की ऐसी विभूतियों द्वारा की जाने वाली दुर्गत पर दो आँसू बहा लीजिये!
(नीचे प्रो.के.के. मिश्र द्वारा चोरी की गयी पोस्ट के स्क्रीन शॉट के साथ ही उनकी मनोहारी छवि का एक छाया-चित्र भी प्रस्तुत कर रहे हैं )
धर्मनिष्ठ प्रोफ़ेसर द्वारा चोरी की गयी पोस्ट का लिंक (https://www.facebook.com/365514070278652/posts/1169516179878433/)
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18 दिसंबर 2018 की मेरी मूल पोस्ट जिसे कौशल किशोर मिश्र ने चुरा लिया (https://www.facebook.com/kavita.krishnapallavi/posts/1926858127369719)
(21अप्रैल, 2020)
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