Friday, April 10, 2020


आज प्रसिद्ध क्रान्तिकारी अमेरिकी अश्वेत गायक और राजनीतिक कार्यकर्ता पॉल रॉबसन का 122 वाँ जन्मदिन है ! मैकार्थी काल के श्वेत प्रतिक्रिया के आतंककारी दौर में पॉल को अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के चलते काफी प्रतिबंधों और प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ा ! कुछ समय के लिए उनके कंसर्ट्स भी प्रतिबंधित कर दिए गए ! कू-क्लक्स-क्लान जैसे श्वेत फासिस्ट गिरोहों ने उनकी टीम पर हमले भी किये ! पर पॉल निर्भीक-अडिग जन-पक्ष में खड़े रहे और निष्कंप आवाज़ में दासता की यातनाओं और मुक्ति के स्वप्नों के गीत गाते रहे ! आज के फासिस्ट घटाटोप में भारत के बौद्धिकों-लेखकों-कलाकारों को पॉल रॉबसन की ही तौरे-ज़िन्दगी चुननी होगी ! अगर नहीं चुन सकते, तो माफ़ कीजिए, प्रगतिशीलता और जन-पक्षधरता का जोड़ा-जामा उतारकर खूंटी पर टांग दीजिये और लगन से गृहस्थी की चक्की पीसनी शुरू कर दीजिये ! वामपंथ और जनवाद को साहित्य की दुनिया में पद-प्रसिद्धि की सीढियाँ बनाने वाले कैरियरवादी, बाजारू, फिलिस्टाइन, लम्पटों ने क्रांतिकारी विचारों को अबतक बहुत कलंकित किया है ! इन पाखंडियों से कुछ नहीं होने का ! समय सबका इम्तेहान लेने वाला है ! वह समय कायर किताबी कीड़ों के घोंसलों में दुबकने और रॉबसन, कॉडवेल, नेरूदा आदि की परम्परा के नए वारिसों के मैदान में उतरने का समय होगा !

रॉबसन के जन्मदिन पर हम उनके एक सुप्रसिद्ध वक्तव्य के साथ ही उनके लिए लिखी गयी नाज़िम हिकमत की कविता प्रस्तुत कर रहे हैं !

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“प्रत्येक कलाकार, प्रत्येक वैज्ञानिक, प्रत्येक लेखक को अब यह तय करना होगा कि वह कहाँ खड़ा है। संघर्ष से ऊपर, ओलम्पियन ऊँचाइयों पर खड़ा होने की कोई जगह नहीं होती। कोई तटस्थ प्रेक्षक नहीं होता…युद्ध का मोर्चा हर जगह है। सुरक्षित आश्रय के रूप में कोई पृष्ठ भाग नहीं है…कलाकार को पक्ष चुनना ही होगा। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष, या फिर गुलामी-उसे किसी एक को चुनना ही होगा। मैंने अपना चुनाव कर लिया है। मेरे पास और कोई विकल्प नहीं है।“

-- पॉल रॉबसन

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पॉल रॉबसन से

-- नाज़ि‍म हिकमत

वे हमें अपने गीत नहीं गाने देते हैं, रॉबसन,
ओ गायकों के पक्षीराज नीग्रो बन्‍धु,
वे चाहते हैं कि हम अपने गीत न गा सकें।
डरते हैं रॉबसन,
वे पौ के फटने से डरते हैं।
देखने,
सुनने,
छूने से
डरते हैं।
वैसा प्रेम करने से डरते हैं
जैसा हमारे फरहाद ने प्रेम किया
(निश्‍चय ही तुम्‍हारे यहां भी तो कोई फरहाद हुआ,
रॉबसन, नाम तो उसका बताना जरा)
उन्‍हें डर है
बीज से,
पृथ्‍वी से,
पानी से,
और वे
दोस्‍त के हाथ की याद से डरते हैं -
जो हाथ कोई डिसकाउण्‍ट, कमीशन या सूद नहीं मांगता
जो हाथ उनके हाथों में किसी चिड़ि‍या-सा फंसा नहीं।
डरते हैं नीग्रो बन्‍धु,
वे हमारे गीतों से डरते हैं रॉबसन।

(अंग्रेजी से अनुवाद:चन्‍द्रबली सिंह)

(9अप्रैल, 2020)

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"मेरे पिता एक गुलाम थे, और इस देश के निर्माण में मेरे लोगों ने भी जानें दी हैं, और मैं यहीं रहूँगा, और ठीक तुम्हारी तरह इसका हिस्सा बना रहूँगा I और कोई भी फासिस्ट ज़ेहनियत का इंसान मुझे यहाँ से बाहर नहीं कर सकता ! बात समझे कि नहीं ?"

-- सुप्रसिद्ध अश्वेत गायक और नागरिक अधिकारकर्मी पॉल रोबसन
(1956 में मैकार्थी काल में 'हाउस अनअमेरिकन अफेयर्स कमेटी' के सामने बयान)

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(भारत में जो हिन्दुत्ववादी फासिस्ट आयेदिन मुसलमानों को देशद्रोही घोषित करते रहते हैं और उनको तथा तमाम सेक्युलर-जनवादी लोगों को पाकिस्तान भेजते रहते हैं, उनके सामने तनकर खड़ा होना होगा और उनकी आँखों में आँखें डालकर इन्हीं शब्दों में उन्हें चुनौती देनी होगी ! यह समय रक्षात्मक मुद्रा अपनाने का नहीं, बल्कि निर्भीक और आक्रामक रुख अपनाने का है I)

(9अप्रैल, 2020)



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