Thursday, March 26, 2020


एक स्त्री होलिका के दहन से शुरू होता है और फिर अगले दिन रंग और भांग की आड़ में स्त्रियों के मान-मर्दन से इसका समापन होता है !

वैसे, इस त्यौहार के बिना भी इस देश में तो रोज़ ही कहीं न कहीं स्त्री-दहन होता रहता है !

रहा होगा कभी यह नयी फसल के घर आने के उल्लास का सामुदायिक किसानी त्यौहार ! अब न वह सामुदायिकता है, न ही वह किसानी समाज !
पहले ब्राह्मणवादी मिथकों का मुलम्मा चढ़ाकर इसे सामंती सवर्ण महाप्रभुओं का उल्लास-पर्व बनाया गया और अब पूँजी ने इसे अपने रंग में रँग लिया है ! वैभव और सामाजिक हैसियत के प्रदर्शन के साथ ही पूँजीवादी मर्दवाद के बेशर्म प्रदर्शन का एक दिन ! एक बंद समाज की यौनिक कुंठाओं के शमन का एक दिन !

ऐसे उल्लास-पर्व एक खुले, स्वस्थ और कुण्ठामुक्त समाज में ही स्वस्थ रूप में मनाये जा सकते हैं !

एक बीमार समाज अपने उल्लास का प्रदर्शन भी बीमार ढंग से करता है और हालात के मारे आम परम्पराबद्ध लोग भी उस दिन उल्लसित होने का थोड़ा स्वांग कर लेते हैं !

(10मार्च, 2020)

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