Tuesday, March 31, 2020

एक सत्यकथा उर्फ़ 'करम गति टारे नाहिं टरे'



यह घटना मुझे एक गुजराती सज्जन ने बतायी जो देहरादून में एक मित्र के घर पर मिल गए थे ! वह काफ़ी गपोड़ी किस्म के मिलनसार आदमी थे और उनके पास गुजराती बनियों की व्यापार-बुद्धि और "धर्मपरायणता" के बहुत सारे किस्से थे ! उनमें से एक, मगन भाई की कहानी थी जो आज मैं आपलोगों को सुनाती हूँ I

मगन भाई का अमदाबाद में बड़ा सा मकान था I एक पेट्रोल पंप था I कई दुकानें थीं I दो बेटियाँ थीं जिनकी शादी हो चुकी थी I बेटा एक ही था I उसे बड़े अरमानों से मुम्बई आई.आई.टी. से कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई थी पर बेटा न नौकरी करने में दिलचस्पी लेता था, न परिवार के व्यापार-धंधों में I बस किताबों में सर गड़ाये कुछ पढ़ता रहता था ! कभी-कभी नाटक देखने या संगीत के कार्यक्रमों में भी चला जाता था ! दोस्तों के साथ यदा-कदा दारू भी पी लेता था I मगन भाई ने उसे विदेश भेजने का प्रस्ताव भी रखा, पर वह तैयार नहीं हुआ I

मगन भाई संघ के कट्टर और अतिसक्रिय स्वयंसेवक रहे थे ! अब साठ की उम्र पार कर रहे थे और सक्रियता कम हो गयी थी I व्यापार की भी व्यस्तताएँ थीं ! अब सिर्फ़ चिंतन-बैठकों और विशेष आयोजनों में ही हिस्सा ले पाते थे और विशेष आर्थिक सहयोगी की भूमिका निभाते थे I

बेटे के रंग-ढंग से तंग आकर एक दिन वह उससे बोले,"बेटा, आखिर कुछ न कुछ तो करना होगा ! इतना बड़ा व्यापार का काम है I वही सम्हालो ! इतनी मेहनत से खून-पसीना एक करके सब खड़ा किया है I पैसा और सुख-आराम की ज़िन्दगी के लिए बहुत हड्डियाँ गलानी पड़ती हैं ! असल में सुख-सुविधाओं की ज़िन्दगी ने तुम्हें आरामतलब और काहिल बना दिया है !"

बेटे ने कहा,"हाँ पिताजी, मैं भी वैसी ही मेहनत करना चाहता हूँ, जैसी आपने अपनी नौजवानी में की थी ! बस 2002 के दंगे जैसे किसी मौक़े का इंतज़ार कर रहा हूँ ! मुझे अभी भी बचपन की थोड़ी-थोड़ी याद है I आप कैसे हथियार लिए हुए लोगों के साथ मुस्लिम मुहल्लों पर धावा बोलने गए थे ! लूट का कितना सामान और जेवरात घर आया था, मुझे याद है ! मम्मी भी तो दुकानों से कितनी साड़ियाँ, माइक्रोवेव, फ्रिज,ए सी, जूतियाँ वगैरह लूटकर लाई थीं एक मिनी ट्रक में लादकर ! और आपने तो यह बंगला भी एक मुस्लिम परिवार को धमकाकर ही अपने नाम कराया था ! आपकी तीन दुकानें भी तो मुस्लिमों की कब्ज़ा की हुई ही हैं ! और आपही के साथ के लोग बताते हैं कि जब कई लड़कियों को उठाकर कहीं बंद किया गया था तीन दिनों तक और मास रेप के बाद उन्हें मार दिया गया था तो उसमें सबसे अधिक मर्दानगी साबित करने वाले आप भी थे ! तो पिताजी, मैं भी ऐसी ही मेहनत से अपना बिजिनेस एम्पायर खड़ा करूँ तो कैसा रहेगा ?"

मगन भाई यह सुनकर चीखना चाह रहे थे बेटे पर, लेकिन उनके गले से घुरघुराहट जैसी आवाज़ निकली और वह बेहोश हो गए I पत्नी रोती-बिलबिलाती उनके मुँह पर पानी के छींटें डालती रहीं और फॅमिली डॉक्टर को फोन मिलाती रहीं I बेटा स्थितप्रज्ञ भाव से बैठा रहा ! कुछ देर बाद डॉक्टरों, रिश्तेदारों, शुभचिंतकों की भीड़ लग गयी I बेटा अपने कमरे में ही बैठा-लेटा रहा I

उसी रात मगन भाई को दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसे I बेटे ने यह कहकर क्रिया-कर्म से इनकार कर दिया कि वह धार्मिक रीति-रिवाजों को नहीं मानता ! बॉडी को या तो मेडिकल कॉलेज को दे दिया जाए या विद्युत शवदाह गृह पहुँचा दिया जाए ! सभी ने कोसा पर वह अडिग रहा ! मगन भाई का अंतिम संस्कार उनके किसी पुराने शाखा-प्रचारक बंधु ने किया ! बेटे ने सारी जायदाद बहनों के नाम कर दिया और खुद घर छोड़कर आस्ट्रेलिया चला गया ! वहाँ वह कुछ दिनों तक अवसाद का शिकार रहा I फिर एकदिन उसने आत्महत्या कर ली !

(18मार्च, 2020)

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