Monday, March 23, 2020


ठक-ठक-ठक-थप-थप-थप (दरवाज़े पर बदहवास दस्तक)

दरवाज़ा खुलता है I ख़ादिम पूछता है," क्या है ?"

"मुझे जनाब इंसाफ़ साहिब से तुरत मिलना है, अभी के अभी ! मुझे शिक़ायत करनी है कि शहर जल रहा है और जलाने वालों में वे भी शामिल हैं जिनपर शहर की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी है !"

"अरे, इंसाफ़ साहिब तो गए हैं तेल लेने ! गुजरात के किसी घांची के कोल्हू से ! क्या तुम जानते नहीं, गुजरात के घांचियों के कोल्हू तो सरसों, अलसी, सूरजमुखी ही नहीं, इंसानों को भी पेर देते हैं ! इनदिनों इंसाफ़ साहिब के जुबान को भी गुजरात के घांचियों के कोल्हू के तेल का चस्का लग गया है !"

फ़रियादी फिर सिर पर पाँव रखकर भागता है !

(27फरवरी, 2020)

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