शाहीन बाग़ का सन्देश जंगल की आग की तरह पूरे देश में फैल रहा है ! देश के आम लोग साम्प्रदायिक विभाजन की रंगा-बिल्ला की सारी साजिशों को पैरों तले रौंदते हुए कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो रहे हैं !
कोलकाता (पार्क सर्कस), कानपुर (मुहम्मद अली पार्क, चमनगंज), इलाहाबाद (मंसूर बाग़), पटना (सब्ज़ीबाग़),गया (शान्तिबाग़), भोपाल (इक़बाल मैदान), पुणे (कौसर बाग़) के अतिरिक्त देश के बीसियों छोटे-छोटे शहरों से शाहीन बाग़ की ही तरह के जन-सत्याग्रह की खबरें आ रही हैं, हालाँकि पूँजीपतियों का टुकड़खोर मीडिया इन खबरों का लगभग पूरीतरह से ब्लैकआउट कर रहा है !
हमें इस जन-असहयोग आन्दोलन को घर-घर तक सन्देश पहुँचाकर व्यापक और गहरा बनाने में अपनी पूरी ताक़त झोंक देनी चाहिए ! कैम्पसों की आंदोलित युवा शक्ति को इस काम में लगना ही होगा ! युवाओं के बिना भला ऐसे किसी आन्दोलन को आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है ! इस सत्र की परीक्षाओं के बहिष्कार का आह्वान किया जाना चाहिए ! जब देश तबाही-बर्बादी से निकलने की संभावनाओं को टटोलता हुआ बदलाव के मुहाने की और आगे बढ़ रहा हो, उससमय अकादमिक कैरियर का एक वर्ष नौजवान अगर कुर्बान करते हैं, तो यह कोई बड़ी क़ुर्बानी नहीं है ! वैसे भी पढ़-लिखकर बेरोजगार सड़कों पर ही घूमना है, अगर आप किसी चोट्टे की, नेता-अफसर-दलाल-व्यापारी या पूँजीपति की औलाद नहीं हैं तो ! भगतसिंह ने कहा था कि नौजवानों को ही गाँवों के खेतों-खलिहानों और शहरों के कल-कारखानों में खटने वाले मेहनतक़शों तक क्रान्ति का सन्देश लेकर जाना होता है ! जो लोग कह रहे हैं कि छात्रों और शिक्षकों को आन्दोलन छोड़कर अपनी कक्षाओं में लौट जाना चाहिए क्योंकि उनका काम सिर्फ़ पठन-पाठन होता है; वे भरे पेट और चमकते चहरे वाले गधे हैं, या रंग-बिल्ला के फासिस्ट गिरोह के हमजोली हैं, या बिके हुए लोग और बौद्धिक गुण्डे हैं ! वे लतियाए जाने के सर्वथा सुयोग्य पात्र हैं !
यह बहुत अच्छी बात है कि लेखकों-कलाकारों-संस्कृतिकर्मियों-सिनेकर्मियों का एक बड़ा हिस्सा भी इसबार फासिस्टों के ख़िलाफ़ मुखर हो चुका है ! लोगों ने डरना बंद कर दिया है ! पद-पीठ-पुरस्कार-वजीफ़ा आदि के पीछे भागने वाले टुकड़खोर, दरबारी और दोगले-दुरंगे कवि-लेखक-कलाकार नंगे हो रहे हैं और अलग-थलग भी ! उन्हें और नंगा करना होगा ताकि जनता उन्हें सड़कों पर दौड़ाकर जुतियाये और उनपर थूके !
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपनी पूरी ताक़त लगाकर 'हम कागज़ नहीं दिखाएँगे' के उद्घोष से पूरे देश की सड़कों-गलियों को गुँजा दें ! पूरे देश में सैकड़ों, नहीं हज़ारों शाहीन बाग़ बनाने होंगे ! सड़कों-चौराहों पर अवामी बस्तियाँ बसानी होंगी ! तब फिर देखा जाए कि रंगा-बिल्ला के खाकी और भगवा कुत्ते कितने लोगों को गिरफ्तार करते हैं, कितनी लाठी-गोली और आँसू गैस के गोले चलवाते हैं और कितनों को डिटेंशन कैम्पों में बंद करते हैं ! पिछले दरवाज़े से NRC लाने की प्रक्रिया के तौर पर आगामी अप्रैल माह से NPR शुरू होने जा रहा है ! इसके देशव्यापी बहिष्कार के लिए सघन और व्यापक अभियान अभी से चलाने होंगे ! इस नागरिक अवज्ञा आन्दोलन का फासिस्ट हुक्मरानों के पास कोई काट नहीं होगा !
एक ख़ास बात इस बार यह भी रही कि गोदी मीडिया के जो कुत्ते आन्दोलन और धरना-स्थलों पर पहुँचते थे, लोग उन्हें दुरदुरा कर और 'मुर्दाबाद' के नारे लगाते हुए भगा देते थे ! सत्ता और पूँजी के टुकड़खोर भोंपुओं की सर्वशक्तिमानता के मद को जनता ने मिट्टी में मिला दिया ! पर इतने से ही काम नहीं चलेगा ! गोदी मीडिया के बहिष्कार की मुहिम को भी लगातार चलाना होगा और देशव्यापी बनाना होगा ! साथ ही, कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए वैकल्पिक जन मीडिया की श्रृंखला तैयार करना भी बेहद ज़रूरी है !
(13जनवरी, 2020)
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