Friday, February 28, 2020


कल का दिन इतिहास का एक अविस्मरणीय काला दिन था ! गुजरात-2002 का एक नियंत्रित-नियोजित संस्करण रचने के लिए राजकीय आतंक की ताकत संघी उन्मादी बर्बरों की वाहिनियों के साथ दिल्ली की सड़कों पर उतर पड़ी थी ! कपिल मिश्रा तो महज सामने खड़ा किया गया एक मुखौटा था ! बर्बरता की इस मुहिम का संचालन-नियंत्रण सत्ता केन्द्रों और फासिस्टों के कमांड ऑफिस से हो रहा था !

अबतक दर्ज़नों वीडियो सामने आ चुके हैं ! बात एकदम दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि पुलिस पूरीतरह दंगाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही थी, गोलियां और आँसू गैस के गोले चला रही थी, पत्थर फेंक रही थी, दंगाइयों को बचा रही थी और मुसलमान युवकों और स्त्रियों को चुन-चुनकर निशाना बना रही थी !

दंगाइयों के हमलों से भड़ककर कुछ जगह सी ए ए-एन आर सी प्रोटेस्टर्स ने भी हिंसक प्रतिरोध किये, पर ऐसी घटनाएँ गिनी-चुनी ही हुईं ! असल बात यह है कि यह जन-प्रतिरोध पर पुलिस और हिन्दुत्ववादी गुंडों का इकतरफ़ा हमला था ! वे किसी भी कीमत पर शाहीन बागों से उठी आवाज़ को एकदम नात्सी अंदाज़ में खामोश कर देना चाहते हैं, खून और राख की ढेरी में दबा देना चाहते हैं !

इस साज़िश को नाकाम करने के लिए अब और ज़रूरी हो गया है कि जन-प्रतिरोध को और गहरा और व्यापक बनाने के लिए हर धर्म की आम मेहनतकश आबादी को और बड़े पैमाने पर संगठित किया जाए ! देशव्यापी सिविल नाफ़रमानी की तैयारी को और तेज़ करना होगा, मोहल्ले-मोहल्ले और बस्ती-बस्ती नागरिक कमेटियाँ और स्वयंसेवक दस्ते बनाने होंगे ! धरना-स्थलों से कत्तई हटाने की ज़रूरत नहीं है ! इसे फासिस्ट अपनी जीत समझेंगे और आगे अपने हमले और तेज़ कर देंगे ! इससमय आन्दोलन स्थगित करने का मतलब होगा कि मोदी गिरोह को सी ए ए -एन पी आर-एन आर सी लागू करने के लिए एकदम खुला हाथ दे दिया जाए जबकि ज़रूरत इस बात की है कि 1 अप्रैल से शुरू होने वाले एन पी आर के देशव्यापी बहिष्कार की कोशिशों को और तेज़ कर दिया जाए !

कल की राज्य-प्रायोजित हिंसा के बाद केजरीवाल के "नागारिकवाद" और "विचारधारा-विहीन"राजनीति का चाल-चेहरा-चरित्र एकदम नंगा हो गया है ! यह जोकर फासिस्टों की दूसरी सुरक्षा-पंक्ति है, इससे अधिक कुछ भी नहीं ! कल यह भी साफ़ हो गया कि अब विपक्षी संसदीय दलों से कुछ भी उम्मीद पालने की जगह जनता को अपनी रक्षा खुद करनी होगी और अपने हक़ों की लड़ाई खुद ही सड़कों पर लड़नी होगी ! न्यायपालिका से भी कोई आस लगाना एकदम बेकार है ! न्यायमूर्ति बोवडे अब भी कहेंगे कि हिंसा रुकने तक हम इस मामले की कोई सुनवाई नहीं करेंगे ! वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने से पहले नागरिकों को अपने कर्तव्य-पालन की राय देते रहेंगे और सड़कों पर फासिस्ट खूनी जोम्बी अपना "कर्तव्य-पालन" करते रहेंगे ! न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा तो अब मोदी की "बहुमुखी प्रतिभा" और "ज़मीनी कामों" से और भी अभिभूत हो जायेंगे !

सारे विभ्रमों से मुक्त हो जाने का समय आ गया है ! राज्यसत्ता का हर अंग-उपांग पूरीतरह से फासिस्ट नियंत्रण में आ चुका है ! लम्बे समय में खूनी ज़ोम्बियों की जो भीड़ तैयार की गयी है, उसे सड़कों पर मोब-लिंचिंग करते हुए, आसिफा के बलात्कारियों और सेंगर के पक्ष में जुलूस निकालते हुए और यहाँ-वहाँ दलितों पर कहर बरपा करते हुए हम देख चुके हैं ! अब यह खूनी-बर्बर झुण्ड जनता पर खुला हमला बोलने और सड़कों पर खून की नदियाँ बहाने के लिए तैयार है ! इनका बहादुरी से मुकाबला करना होगा ! कायरता आत्मघाती होगी ! एकजुट जन-सैलाब का मुकाबला ज़ालिम से ज़ालिम सत्ता और बर्बर से बर्बर फासिस्ट लाठियों-गोलियों और जेलों-क़त्लग़ाहों से नहीं कर सकते !

(25फरवरी, 2020)

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