जो खाकीवर्दीधारी इन सर्द रातों में आन्दोलनरत स्त्रियों-बच्चों के कम्बल और खाना लूट सकते हैं, वे कफ़नखसोट से भी बदतर हैं ! वे फासिस्टों के पाले हुए मुर्दाखोर कबरबिज्जू हैं, जंगली कुत्ते हैं ! जालिम सत्ता आम घरों से आने वाले जिन लोगों को वर्दी-डंडा देकर आम लोगों पर ज़ुल्म करवाती है, उनमें से बहुतेरों का विमानवीकरण हो जाता है और वे अत्याचार की मशीनरी का एक पुर्जा मात्र बनकर रह जाते हैं ! और जिनमें कुछ मनुष्यता बची रह जाती होगी, उन्हें दिन भर आम बेगुनाहों पर डंडे चलाने के बाद, या थानों-हवालातों में यातना देने के बाद, रातों में शायद ही नींद आ पाती होगी ! अपने मासूम बच्चे की आँखों में झांकने के बाद उनके बदन में भी शायद सिहरन और ग्लानि की लहर दौड़ पड़ती होगी ! लेकिन सत्ता-तंत्र अपनी दमन-मशीनरी में लगे एक-एक वेतनभोगी मुलाजिम को धीरे-धीरे एक निर्जीव पुर्जा बनाता चला जाता है ! ऐसे लोग चेतते तब हैं जब आग की लपेट में उनके अपने भी आने लगते हैं ! व्यापक जन-सैलाब की नैतिक-भौतिक शक्ति को देखकर कईबार वर्दीधारियों की मदहोशी भी टूटने लगती है ! पिछले कुछ अरसे के दौरान हांगकांग, बैंकॉक और दुनिया के कई जगहों से ऐसी घटनाओं की खबरें आई थीं जहाँ आन्दोलनरत लोगों पर पुलिस ने लाठीचार्ज करने या आँसूगैस के गोले फेंकने से इनकार कर दिया ! उन स्थितियों को, और उनके कारणों को आसानी से समझा जा सकता है !
(19जनवरी, 2020)
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फासिस्ट जालिमो ! कमीने नौकरशाहो ! खाकी वर्दी वाले दुमकटे कुत्तो ! न्याय की देवी की आँख पर बंधी पट्टी उतारकर खुद अपनी आँख पर बाँध लेने वाले इन्साफ के ठेकेदार, बिके हुए ज़मीर वाले लोगो ! भाड़े के कलमघसीटो और बाइस्कोप के भोंपुओ ! खैरियत चाहते हो तो सम्हल जाओ ! बहुत दुर्गत होगी ! इस ज़ुल्म की कीमत सूद-ब्याज सहित चुकाओगे ! सड़कों पर दौड़ा-दौड़ाकर लतियाये जाओगे ! हूंके जाओगे, दरकच्च के कूटे जाओगे ! लेकिन नहीं, गधे इतिहास तो पढ़ते नहीं ! तुम अभिशप्त हो अपनी ऐतिहासिक दुर्गति को प्राप्त करने के लिए और अपने कुकर्मों की सज़ा भुगतने के लिए ! तुम अभी भी समझ नहीं पा रहे हो कि दबे-कुचले लोग यदि डरना बंद कर दें तो कितना भयंकर तूफ़ान आता है ! अगर तुम उस तूफ़ान के कदमों की आहट अभी भी नहीं सुन पा रहे हो तो प्रतीक्षा करो !
"शोलों के पैकरों से लिपटने की देर है
आतिशफ़िशां पहाड़ के फटने की देर है !"
(19जनवरी, 2020)
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