Saturday, February 15, 2020

'हँसो, हँसो, जल्दी हँसो

'हँसो, हँसो, जल्दी हँसो

तुम कहते रहोगे बादशाह सलामत कि

'हँसो, हँसो, जल्दी हँसो

मेरी मज़ेदार बातों पर हँसो,

बुक्का फाड़कर हँसो,

लोटपोट होकर हँसो,

हँसो, और दिखाओ कि तुम खुश हो !'

और हम खामोश रहेंगे

सन्नाटे से तुम्हें डराते हुए

और फिर हम हँसेंगे

तुम्हारी मूर्खताओं पर,

तुम्हारे बेपर्दा झूठों पर,

इतिहास से न सीखने की तुम्हारी आदत पर,

और तुम्हारे बड़बोलेपन पर !

हम हँसेंगे आज़ाद हँसी

सड़कों पर, जेलों में और डिटेंशन कैम्पों में भी

तुम्हें और तुम्हारी उन्मादी भीड़ को डराते हुए !

हम जानते हैं कि हत्यारे आज़ादखयाल लोगों की

हँसी से भी डर जाते हैं !

उन्हें निर्भीक हँसी में इतिहास का वह डरावना अट्टहास

सुनाई देता है जो उन क़ब्रगाहों में

गूँजता रहता है जहाँ

दुनिया के तमाम तानाशाह

दफ़न होते हैं !

(15जनवरी, 2020)

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