पुराणों में किस्से मिलते हैं कि जीवन भर ब्रह्मचर्य पर अडिग किसी ऋषि-मुनि का चित्त चौथेपन की अवस्था में किसी चंचला को देख चंचल हो गया और उनका तपोव्रत-भंग हो गया ।
हिन्दी के कई सुप्रतिष्ठित वामी लेखकों के साथ भी ऐसा होता है । जीवन भर पुरस्कारों और वजीफों की संस्कृति का विरोध करते रहे और बुढ़ापे में कोई सम्मान या पुरस्कार लेने के लिए सत्ता या पूँजी के किसी संस्क़ृति-प्रतिष्ठान में मंच को सुशोभित करते नज़र आये ।
हिन्दुत्ववादी फासिस्टों का भोंपू मीडिया घराना भी अगर आसमान का तारा बनाने लगे तो बनने को मन तो डोल ही जाता है ।
(29दिसम्बर,2019)
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जो सबसे शरीफ़, सबसे भलामानस, अजातशत्रु और शांतिप्रिय टाइप, कुछ-कुछ निरीह सा प्राणी होता है वह बर्बरों का स्वागत करने के लिए गुलदस्ता, माला, झंडी-पताका आदि लेकर सबसे पहले नगर-द्वार पर उपस्थित होता है ।
(29दिसम्बर,2019)
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पूँजी और सत्ता के सभी भव्य संस्कृति प्रतिष्ठान कुत्तों के गू की ढेरी पर खड़े हैं और कलाकारों-कलमकारों की कमीनगी और कुत्तागीरी के सहारे चलते हैं ।
(31दिसम्बर,2019)
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