Sunday, December 29, 2019


इस आन्दोलन के दौरान एक और महत्वपूर्ण बात जो देखने में आयी, वह यह कि दर्ज़नों जगहों पर फासिस्ट सरकार के चमचे चैनलों की गाड़ियों और रिपोर्टरों को घेरकर लोगों ने 'गोदी मीडिया वापस जाओ' जैसे नारे लगाये, उनसे बात तक करने से इनकार कर दिया और कई जगह वापस जाने पर भी मजबूर कर दिया ! पहली बार जनता की इस नफ़रत और गुस्से का सामना करते हुए मीडिया के दल्ले बैकफुट पर नज़र आये !

इस परिघटना से यह साफ़ हो गया कि आन्दोलनों के दौरान जब जनता की चेतना जागृत और मुखर होती है तो सत्ता की दलाल मीडिया को भी सबक सिखाया जा सकता है !

आन्दोलन के दौरान यह एक महत्वपूर्ण कार्यभार होना चाहिए कि लगातार गोदी मीडिया के बहिष्कार की लोगों से अपील की जाए और प्रदर्शनों-धरनों के दौरान ऐसे चैनलों के रिपोर्टरों से न सिर्फ़ बात न की जाए बल्कि नारे लगाकर उन्हें भगा दिया जाए ! यह पूरी कोशिश की जानी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को स्मार्टफोन पर सोशल मीडिया के उन न्यूज़ पोर्टल्स को देखने के लिए कहा जाए जो काफी हद तक ज़मीनी सच्चाइयों की खबर दे देते हैं और किसी हद तक वस्तुपरक विश्लेषण भी करते हैं !

हालांकि इतना ही पर्याप्त नहीं होगा ! वैकल्पिक जन-मीडिया के नेटवर्क को व्यवस्थित और मज़बूत करने के बारे में तो सोचना ही होगा !
(23दिसम्‍बर, 2019)

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