Monday, September 09, 2019

डायरी के कुछ राजनीतिक इन्दराज


आप एक सच्चे कम्युनिस्ट हैं, कठिन समय में भी उम्मीदों, मंसूबों और योजनाओं से लबरेज, अध्ययन-मनन-चिंतन करते हुए और लोगों के बीच उनकी तरह रहते-जीते हुए और काम करते हुए I लेकिन आपको अपने किये के बदले कुछ चाहिए, पैसे के रूप में नहीं, यश-ख्याति-स्थापना-मान्यता के रूप में; तो शायद आपका वर्ग-मूल्यों से बद्धमूल मानस यात्रा का एक ऐसा मानचित्र तैयार कर रहा है जो आपको पतन और विनाश की एक गहरी-अँधेरी खाई की ओर ले जाएगा I

अगर आप एक मार्क्सवादी प्रोफ़ेसर हैं, तो कोई बात नहीं ! पर अगर आप एक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं तो शायद पतन की ढलान की ओर अग्रसर हैं I अगर आपकी राजनीतिक लाइन सही हो तो भी ! राजनीतिक लाइन और निजी ज़िंदगी का अन्योन्याश्रय द्वंद्वात्मक सम्बन्ध होता है I एक गलत राजनीतिक लाइन व्यवहारकर्ता को कालान्तर में निजी तौर पर भी पतित कर देती है I दूसरी ओर, अगर हमारी निजी ज़िंदगी गैर-कम्युनिस्ट ढंग की है, जैसे उसमें गैर-ज़िम्मेदारी, फिजूलखर्ची, विलासिता, मनमानापन और स्वेच्छाचारिता है, तो कालान्तर में ऐसी गलत ज़िंदगी से भी गलत लाइन निकलने लगती है, या कम से कम, बल पाने लगती है ! अगर आप यशकामी हैं तो आपके न चाहने पर भी ठकुरसुहाती बतियाने वाले, गणेश-परिक्रमा करने वाले तत्व आपको घेर लेंगे ! अगर आप स्वयं आत्मोन्नतिवादी (कैरियरवादी) हैं, आत्म-प्रक्षेपणवादी (सेल्फ-प्रोजेक्शनिस्ट) हैं, आत्म-प्रकाशनी वृत्ति (लाइमलाइट मेंटालिटी) से ग्रस्त हैं, तो आपके निकटस्थ भी चाहेंगे कि आप तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ने में उनकी मदद करें, या यूँ कहें कि, ऐसे ही लोग आपके निकट आयेंगे !

आप क्रान्ति के लिए काफ़ी मेहनत करते हैं, लेकिन बदले में प्रसिद्धि के क्षितिज पर चमकने के लिए बेचैन भी हैं, तो आपका अभीष्ट शायद आपको प्राप्त न हो और प्राप्त होने-या होने -- दोनों ही सूरत में आपका पतन के अस्ताचल की ओर जाना सुनिश्चित है I सच्चा कम्युनिस्ट मानस एक सर्जक मानस होता है ! जिसतरह एक सर्जक सृजन की प्रक्रिया और उसके परिणामों में ही अपनी सार्थकता और आनंद और संतोष की प्राप्ति करता है और, यश-प्रतिष्ठा उसके लिए प्रेरक तत्व होते ही नहीं, उसीतरह भविष्य-निर्माण के लिए कर्मरत कम्युनिस्ट का मानस होना चाहिए !

याद रखिये, कोई व्यक्ति योजना बनाकर इतिहास-पुरुष या नायक नहीं बनता है I कतारें आपको नायक नहीं बना देंगी I यह काम जन-समुदाय करता है और लम्बे समय तक सिद्धांत और व्यवहार में जाँचने-परखने और ठोंकने-बजाने के बाद करता है I इसके लिए इतिहास का एक अच्छा-खासा कालखण्ड खर्च हो जाता है I स्वयं नायक बनने के लिए आसमान के कुलाबे भिड़ाते हुए आप बस, अंतिम निर्णय के तौर पर, एक विदूषक बनकर रह जाते हैं, जिसे लोग कभी याद भी करते हैं तो हँसी-मजाक में, या वितृष्णा के साथ !

इसीलिये लेनिन और माओ कम्युनिस्टों से हमेशा विनम्र होने और जनता की सेवा करने की बात करते थे I हमें दृढ़ होना चाहिए, लेकिन आत्माभिमानी नहीं ! हमें वैचारिक संघर्षों में भी जुझारू होना चाहिए, लेकिन हठी और उद्दण्ड नहीं I माओ का लेख 'उदारतावाद का विरोध करो' सभी कम्युनिस्टों को अवश्य बार-बार पढ़ना चाहिए I चीन में 'महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति' के दौरान पार्टी के भीतर जो लंबा सतत संघर्ष चला, उसमें आत्मोन्नतिवाद, आत्म-प्रकाशनी वृत्ति और नेता बनाने के लिए पार्टी में भरती होने की प्रवृत्ति पर विशेष चोटें की गयीं और कई लेख लिखे गए ! उन्हें पढ़ना चाहिए I सांस्कृतिक क्रान्ति का एक सुप्रसिद्ध नारा था," 'स्व' के विरुद्ध संघर्ष करो" (फाइट अगेंस्ट सेल्फ).

अब जब क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन को एक बार फिर से, एकदम धूल-मिट्टी से खड़ा करने का कार्यभार सामने है, तो इन चीज़ों पर भी गंभीरता से सोचना ज़रूरी है I बुद्धिजीवियों को ये मसले ज़रूरी और दिलचस्प नहीं लगते, लेकिन जेनुइन कम्युनिस्ट कतारें इनसे कत्तई मुँह नहीं मोड़ सकतीं !

(31अगस्‍त, 2019)

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