एक रिटायर्ड विद्वान क्रांतिकारी ने कहा,"अमूर्त और पंगु सिद्धांतों से नुकसान हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है I लेकिन अंधा और सिद्धांत-रिक्त व्यवहार तो निश्चित ही विनाशकारी सिद्ध होता है I"
फिर एक दुर्दांत अटल क्रांतिकारी मिले जो 30-40 वर्षों से निष्काम कर्मयोगी भाव से क्रांति-कर्म में अविचलित सलग्न हैं और आज भी हूबहू वही बातें करते हैं जो 30-40 साल पहले किया करते थे I उन्होंने कहा," व्यवहार से कटे हुए और अमूर्त सिद्धांत सामाजिक क्रांति की राह की सबसे बड़ी बाधा हैं I सबसे बड़ी बात है, बस लोगों की माँगों को लेकर लड़ते रहो ! इसी में से रास्ता निकलता जाएगा I जितना ज्यादा पढ़ोगी और विद्वानों की बातें सुनोगी, कन्फ्यूज़ होती जाओगी I"
तीसरी जगह संत टाइप हो चुके, राग-विराग से ऊपर उठ चुके एक रिटायर्ड प्रोफ़ेसर का प्रवचन चल रहा था जो कभी मार्क्सवादी हुआ करते थे पर व्यवहार-बुद्धि से मार्क्सवाद की "अपूर्णता" को ताड़ने के बाद अब मार्क्सवादी, गाँधीवादी, अम्बेडकरवादी,भगतसिंहवादी, बुद्धवादी, जेनपंथी, ताओपंथी आदि-आदि सब एक साथ हुआ करते हैं I मैं भी सभी भक्तजनों के साथ सत्संग में शामिल हो गयी I प्रोफ़ेसर साहिब कह रहे थे,"सबसे सीखो, सबसे लो, सबकी कमियाँ निकालने के पहले अच्छाइयाँ देखो I सबसे मुख्य बात यह है कि प्रेम करना सीखो, दोस्ती करना सीखो, मार्क्स-एंगेल्स के विचारों से पहले उनकी दोस्ती को आदर्श बनाओ I इसतरह पहले स्वयं में परिवर्तन लाओ, फिर देखो, दुनिया किसतरह धीरे-धीरे बदलने लगती है !"
हिन्दू धर्म में मुक्ति के जो तीन मार्ग -- ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग, प्रेममार्ग/भक्तिमार्ग बतलाये गए हैं, उन्हें जानने-समझने का सुअवसर तो मुझ अभागन को न मिला, लेकिन इनदिनों राजनीतिक विमर्श की दुनिया में ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग और प्रेममार्ग के जितने पंथ चलन में हैं उनसे काफ़ी हद तक परिचित हो चुकी हूँ I ये सभी मार्ग तुन्दियलों द्वारा पार्कों में किये जाने वाले हास्ययोग और रामदेव के सुझाव पर नाखूनों को परस्पर रगड़ने जितना ही महत्वपूर्ण हैं ! या फिर इन्हें 'बौद्धिक पवन-मुक्तासन' कहा जाना चाहिए I
(9जुलाई, 2019)
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मुझे तो अब यह लगने लगा है कि जल्दी ही मार्क्स, गाँधी, नेहरू,अम्बेडकर, भगतसिंह, लोहिया, जार्ज फर्नांडीज़, ज्योति बसु और कन्हैया कुमार आदि-आदि का नाम एक साँस में लेने वाली लिबडल और चोचल ढेलोक्रेट जमात का कोई दुखी-क्षुब्ध-संभ्रांत सदस्य जल्दी ही राहुल गाँधी को यह दुर्लभ सुझाव देने वाला है कि वह उठ खड़े हों और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी को पुनर्जीवित कर दें, या नयी सदी की एक नयी कम्युनिस्ट पार्टी ही बना डालें ! लेकिन शायद वे यह सोचकर रुक जाते हैं कि 'बच्चे की जान लेनी है क्या ?'
इस जमात के शाश्वत न्यायशीलों को सबसे ज्यादा गुस्सा तो भारतीय पूँजीपतियों के इस अन्याय पर आया है कि उन्होंने पवित्र चुनाव यज्ञ में अपने सहयोग का 86 प्रतिशत हिस्सा अकेले भाजपा को दे दिया और शेष 14 प्रतिशत से शेष जिन सभी पार्टियों के बीच सत्यनारायण व्रत-कथा की पंजीरी बंटी, उनमें कांग्रेस भी शामिल थी!
खैर, मैं तो यह सोच रही हूँ कि अगर ऐसे कोई कमलिस्ट या चोचलिस्ट पाल्टी बन ही गयी तो उसकी सेंट्रल कमेटी के पोलिट ब्यूरो की स्टैंडिंग कमेटी में ज्योतिरादित्य, मिलिंद देवड़ा, सचिन पाइलट, सुरजेवाला, शशि थरूर, मणिशंकर अय्यर आदि के अतिरिक्त किन-किन लोगों को स्थान मिलेगा, मनमोहन सिंह कहाँ एडजस्ट किये जायेंगे, मैडम की पोजीशन क्या होगी... आदि-आदि !🤔🤔🥵🥵😁😁
(9जुलाई, 2019)
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बनारसी लंगड़ा (गोरखपुर में कपूरी नाम से मशहूर), दशहरी, गौरजीत, चौसा, सफेदा और अनंत किस्म के बीजू आम तो बचपन से खाती रही हूँ, गंध से एक-एक का फर्क़ 2 किलोमीटर दूर से बता सकती हूँ ! अल्फांजो भी चख चुकी हूँ और दक्षिण वाला सफेदा, नीलम, रसपुरी, तोतापुरी का भी स्वाद ले लिया ! इस जनम के लिए दक्षिण भारत तो निपट गया ! इसबार सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ की ओर से गुज़रना हुआ तो बहुचर्चित रतौल के साथ-साथ आम्रपाली, हुस्नआरा, हमाम आदि दर्ज़नों किस्म के कम प्रसिद्ध लेकिन बेहतरीन आमों के स्वाद लिए जो कम उत्पादन के चलते राष्ट्रीय बाज़ार के दूरस्थ हिस्सों तक नहीं पहुँच पाते ! जिन साथियों की बदौलत यह मौक़ा नसीब हुआ, परवरदिगार उन्हें उसूलों का पाबन्द और हिम्मती बनाए और फासीवाद से लड़ते रहने का जज़्बा और हौसला दे ! अब काश कुछ ऐसे दिलदार और इंसानियत से मोहब्बत करने वाले बन्दे मिलें जो बंगाल का मालदह, हिमसागर, किशनभोग और लक्षमणभोग, गुजरात का केसर (नहीं, इसको लिस्ट से बाहर करती हूँ),गोवा का मनकुरद, तमिलनाडु का माल्गोआ और कर्नाटक का बादामी भी चखा दें I ताउम्र ऐसे लोगों के लिए दुआएँ माँगूगी और खुदा से कहूँगी कि वह ऐसे लोगों को ऐसा ज़मीर दे कि वे हुक्मरानों के दरबार में कभी भी कोर्निश न बजायें !
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😁😄😆
ताज्जुब न करें ! कसाइयों और कातिलों के निज़ाम में सर उठाकर शान से जीने वाले और लड़ने वाले लोगों के लिए ज़रूरी है कि वे सख्तजान होने के साथ ही ज़िन्दादिल भी हों, खूँख्वार दुश्मन की भी खिल्ली उड़ाते रहें, अपने ऊपर भी हँस पाने की कूव्वत रखें और खूब स्वाद ले-लेकर नफ़ासत और नज़ाक़त के साथ किसिम-किसिम के आम खाते रहें !
(9जुलाई, 2019)
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