Thursday, August 22, 2019

हमारे समय के महाकवियों में से एक

हमारे समय के महाकवियों में से एक

आजीवन वह निर्विवाद और निष्कलुष रहा

कठिन विषयों पर चिंतनशील मौन धारे रहा,

विवादास्पद प्रश्नों पर कुछ अमूर्त

दार्शनिक स्थापनाएँ देता रहा I

उसकी हर बात का एक अर्थ सत्ता के लिए होता था,

दूसरा विद्वानों के लिए, और बचे आम लोग,

तो उनकी तो उसके शब्दों तक पहुँच ही असंभव थी I

वह अजातशत्रु था, उसके पास उजली हँसी थी

और सुधी आलोचकों का कहना था कि बाईसवीं सदी में

उद्घाटित होने थे उसकी बहुपरती कविताओं के

कुछ और नए अर्थ !

.

उसने ज़िंदगी की कुरूपताओं के बारे में

इतने सुन्दर, चमकदार और तराशे हुए

शब्दों में लिखा कि कुरूपताएँ मोहक सुन्दरताओं में

रूपांतरित हो गयीं I

सड़कों पर बहते रक्त को वह जादुई ढंग से

रेशम की सरसराहट जैसा बना देता था और

चीत्कारों को राग मालकौंस सा सजा देता था I

वह ऐसा जादू रचता था कि कोई भी दुर्भाग्य

सुन्दर सौभाग्य जैसा दुर्भाग्य बनकर रह जाता था I

उसकी कविता असहनीय दुखों और यंत्रणाओं को

ईर्ष्या की चीज़ें बना देती थी I

हर सजीव वस्तु को वह निर्जीव चीज़ों के

रूपकों और बिम्बों में ढालता था

और अकादमियों में उसका सम्मान लगातार बढ़ता जाता था I

फासिज्म तक अगर उसकी कविताओं में प्रवेश करता था

तो अपनी सारी भयावह क्रूरता, कुटिलता

और असभ्यता त्यागकर आता था I

.

तितलियों की तरह उसके आसपास

उड़ते रहते थे चमकीले सतरंगे पंखों वाले शब्द I

अपरिचित संज्ञाओं, विशेषणों, क्रिया-विशेषणों को वह

उँगलियों में धारे रहता था अंगूठियों की तरह

और रूपकों-बिम्बों की जुगाली करता रहता था

पान की गिलौरियों की तरह I

स्त्रियों को खूब रिझाता था बैठकियों में,

गिन-गिनकर प्रेम करता था

लेकिन हर रात प्रतिष्ठा के भुने हुए गोश्त के साथ

यश की मदिरा पीने के बाद अपने पुरस्कारों और सम्मानों के

साथ ही केलि करता था बिस्तर पर सम्मान में मिले

शाल-दुशाले बिछाकर I

.

एक सुबह दुनिया सहसा बदली

बिना कोई पूर्व-सूचना दिए हुए

और मैले-कुचैले कपड़ों में गली-कूचे के सबसे मामूली लोग

जब बेधड़क घुसे उस प्रतिष्ठित-पुरस्कृत कवि के घर में

तो वह नंगा मरा पड़ा था तमाम शब्दकोशों, अपनी पुस्तकों,

पांडुलिपियों, प्रशस्ति-पत्रों और स्मृति-चिह्नों के बीच लेटा हुआ

चूहों, तिलचट्टों और चींटियों से ढँका हुआ I

(20 अगस्‍त, 2019)


No comments:

Post a Comment