ये पैर धोना, गले लगाना, जूठे बेर खाना वगैरह उदार हिन्दू के मानस में गहराई तक धँसी हुई वे मिथकीय कहानियाँ हैं जो प्रकारांतर से जातिगत पार्थक्य, विभेद की रूढ़ियों को ही संजीवनी देती हैं I चुनावी राजनीति में भी इन प्रतीकात्मक घटनाओं का खूब इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि सिर्फ़ कट्टर हिन्दू वोट से वैतरणी पार नहीं होगी, उदार हिन्दू वोट की भी ज़रूरत होगी I इन धतकर्मों से कोई नया दलित वोट तो साथ नहीं आता पर पहले से ही साथ खड़े दलित वोट को साथ बनाए रखने में भी थोड़ी मदद हो जाती है ! असली सवाल उदार हिन्दू वोटरों के विभ्रम बनाए रखने का है ! अगर चुनावी राजनीति की बाध्यताएँ नहीं रहतीं तो अँगूठा काटने, तपस्या करने पर सिर काट लेने और वेद मन्त्र सुन लेने पर कानों में पिघला सीसा डाल देने जैसी मिथकीय कहानियाँ ही चलती रहतीं, पैर धोने और दलित के घर जाकर भोजन करने जैसे प्रपंच करने ही नहीं पड़ते ! पर बदलते ज़माने के साथ अत्याचारी उत्पीड़कों को भी अपने रंग-ढंग तो बदलने ही पड़ते हैं ! हालाँकि अब ऐसी चीज़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता ! मिर्चपुर, ऊना, भीमा कोरेगाँव और दलितों पर लगातार बढ़ते ज़ुल्म के इस दौर में गुजरात का हत्यारा अगर सफाई कर्मियों के पैर धोता है तो बुर्जुआ राजनीति का इससे घिनौना प्रहसन भला और क्या हो सकता है ?
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ये पैर-वैर धोकर, उनके घर का खाना खाकर, किसे उल्लू बना रहा है बे चपरकनाती ! इतनी ही हमदर्दी है तो हाथ से सफाई और सिर पर मैला धोने की प्रथा बंद करो, सफाई के पूरे काम का मशीनीकरण करो, सीवर-सफाई में सालाना होने वाली सैकड़ों मौतों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाओ, दलित-उत्पीड़न के सभी मामलों में तत्क्षण ठोस और कठोर कार्रवाई की गारंटी करो, सभी प्रकार के, निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के सफाई कर्मियों के लिए 20,000 रुपये मासिक न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करो ! जितना कुम्भ और मूर्तियों पर खर्च कर रहे हो, जितना पैसा लेकर तुम्हारे चचा और भैया लोग विदेश भाग गए, सालाना बैंकों का जितना पैसा पूँजीपति डकार जा रहे हैं, सालाना अकेले तुम्हारे देशी और विदेशी दौरों पर जितना खर्च हो रहा है, नेताओं और अफसरों की विलासिता पर सालाना जो खर्च हो रहे हैं, उसके .0001 प्रतिशत से भी कम में यह सारा काम हो जाएगा ! चलो दुग्गल साब, बस इतना ही कर दो और दिखा दो कि तुम एक सच्चे दलित हितैषी हो, और तुम्हारे 56 इंची सीने के भीतर दलितों के लिए बहुत दर्द है ! नौटंकीबाज़ कहींके ! इतनी फूहड़ और अश्लील नौटंकी करते तुम्हें शर्म भी नहीं आती ? आखिर तुम्हारा स्टैण्डर्ड क्या है पोपट ?
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पैर धोता है दलितों के और पिछवाड़ा पूँजीपतियों का I कौड़ियों के मोल अपने मालिक थैलीशाहों को ज़मीन दी किसानों को तबाह करके, जंगल दिए लाखों आदिवासियों को उजाड़कर, पब्लिक सेक्टर के कई-कई उपक्रम दिये, नदियों का पानी दिया, बहुमूल्य खनिजों के खदानों के पट्टे दिए, रफ़ाल बनाने का लाइसेंस दिया, दर्ज़नों रेलवे स्टेशन दिए, लाल किला दिया रखरखाव के नाम पर ! और अब अहमदाबाद, तिरुअनंतपुरम, लखनऊ, जयपुर और मंगलुरु के एयरपोर्ट भी पचास सालों के लिए अडानी को सौंप दिए ! और सुनो ! इस चोट्टे की सरकार ने ONGC और OIL INDIA से कहा है कि वे अपने 66 तेल और गैस के फील्ड प्राइवेट सेक्टर को दे दें ! और सुना कि नहीं, माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी, मेहुल आदि-आदि के बाद आईसीआईसीआई वाली चन्दा कोचर भी पति सहित भाग गयी ! पता करो, वीडियोकान वाला धूत भागा कि नहीं ! जो रफ़ाल बनाने वाला था, उस अनिल अम्बानी का दिवाला पिट रहा है ! क़र्ज़ न चुका पाने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने जेल भेजने की धमकी दी है ! दुनिया भर में घूम-घूम कर अम्बानी-अदानी के कारोबार के लिए सौदे करता रहा और देश में सुप्रीम कोर्ट, सी.बी.आई., चुनाव आयोग, ई.डी. सभी को जेब में रखकर, पूरी मीडिया को कुतिया बनाकर, लाठी-गोली-मुठभेड़-जेल-टार्चर के दैत्याकार तंत्र के सहारे आतंक-राज चलाता रहा ! घनघोर संकट काल में गुजरात के इस हत्यारे और उसके राज़दार दोस्त तड़ीपार को ही पूँजीपति वर्ग का तारनहार बनना था ! फासिस्टी प्रचार तंत्र द्वारा पिलाई गयी उन्माद और नशे की घुट्टी ऐसी होती है कि इतने सबकुछ के बावजूद "मोदी-मोदी" चिल्लाने वालों की कमी नहीं है ! कहीं ऐसा न हो कि विनाशकारी अंजाम के बाद जब इन फासिस्टों और इनके लग्गू-भग्गुओं को जनता ठिकाने लगा दे, तो जो मध्य वर्ग आज नीरो के बाँसुरी की धुन पर 'नागिन डांस' कर रहा है, उसकी आने वाली तीन-चार पीढ़ियों को इस शर्मिन्दगी, ज़िल्लत और अपराध-बोध में जीना पड़े कि उसके बाप-दादे-परदादे ने झूठी देशभक्ति का नशीला सुट्टा मारकर एक बर्बर हत्यारे लुटेरे गिरोह के उन्मादी समर्थकों की भूमिका निभाई थी ! इतिहास में ऐसा हो चुका है I इतिहास से फिर-फिर मुलाक़ात तो हो ही जाती है, भले ही उसका चेहरा हूबहू वही न
(25फरवरी, 2019)
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