Tuesday, March 05, 2019


इतिहास से सबक लेकर अगर आप सजग नहीं रहेंगे तो अतीत के प्रेत भेस बदलकर आते रहेंगे और आप अपनी ग़फ़लत की क़ीमत चुकाते रहेंगे I 76 वर्षों पहले, 27 फरवरी,1933 को नात्सियों ने जर्मन संसद (Riechstag) में आग लगा दी थी I उससमय जर्मनी में भी चुनाव होने वाले थे जिनमें हिटलर की नात्सी पार्टी को बहुमत मिलने की कोई संभावना नहीं थी I फिर हिटलर ने यह घिनौनी चाल चली I संसद भवन में आग लगाकर पूरे देश में यह बात फैला दी कि यह कम्युनिस्टों का काम है I दमन की शुरुआत कम्युनिस्टों से हुई, फिर यहूदी और व्यापक मज़दूर आबादी ! कम्युनिस्टों को संसद से निकाल दिया गया और कम्युनिस्ट नेताओं को जेलों में डाल दिया गया I पूरे देश में यह बात फैला दी गयी कि कम्युनिस्टों के कारण, और यूरोपीय देशों के हमले के अंदेशे के कारण देश खतरे में है, और इससे हिटलर ही देश को बचा सकता है ! कथित राष्ट्रीय गौरव की हिफ़ाज़त की 'मिथ्या चेतना' से ग्रस्त पूरा देश युद्धोन्माद में डूब गया I पिछले चुनावों से 10 प्रतिशत अधिक, यानी करीब 43 प्रतिशत वोट पाकर हिटलर चुनाव जीत गया और फिर जनता की "मांग" पर सभी नागरिक अधिकार निरस्त कर दिए गए I अगले 12 वर्षों तक कोई चुनाव नहीं हुए ! हिटलर सर्वसत्तासंपन्न तानाशाह बन गया।

इस बात को याद रखिये जो अमिट स्याह ने कहा था कि इस बार चुनाव जीतने के बाद भाजपा 50 वर्षों तक शासन करेगी I मत भूलिए कि नोटबंदी, जी.एस.टी., भीषण बेरोज़गारी, 15 लाख रुपये हर नागरिक के खाते में डालने वाले जुमले, रफ़ाल सहित अनेक घोटाले, अदानी-अम्बानी की खुली दलाली और बैंकों का पैसा लेकर पूँजीपतियों के देश से भागने जैसी घटनाओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए जब राममंदिर का मुद्दा काम न आया तो फिर युद्धोन्मादी देशभक्ति के प्रेत का आवाहन किया गया है ! बुर्जुआ जनवाद की संस्थाओं को पंगु बनाकर अघोषित निरंकुशशाही तो किसी हद तक पहले ही कायम की ही जा चुकी है I चुनावों में किसी भी तरह से सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा इसे औपचारिक शक्ल देने की कोशिश भी कर सकती है (भाजपाई संविधान को बदलने की बात यूँ ही नहीं करते रहते हैं !) I या नहीं भी करेगी तो अघोषित फासिस्ट तानाशाही की जकड़न और मज़बूत हो जायेगी।

देश एक बहुत बड़े और विनाशकारी फासिस्ट षड्यंत्र की गिरफ़्त में फँसा हुआ है I सवाल यह है कि हम अतीत से सबक लेकर भीषण तबाही से पहले चेत जायेंगे या तबाही झेलकर ही चेतेंगे ! मत भूलिए, महज चुनाव में हराकर इस फासिस्ट लहर को पीछे नहीं धकेला जा सकता ! सत्ता में न रहकर भी ये बर्बर सड़कों पर खूनी उत्पात मचाते रहेंगे I इन्हें पूरे समाज से उखाड़ फेंकना होगा I फासिज्म संकटग्रस्त पूँजीवाद की उपज है और यह निम्न-बुर्जुआ वर्ग का, तृणमूल स्तर से संगठित एक धुर-प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन है ! मज़दूर वर्ग, मेहनतक़शअवाम और मध्य वर्ग के रेडिकल हिस्सों का एक जुझारू प्रगतिशील सामाजिक आन्दोलन खड़ा करके ही इस खूनी लहर का मुकाबला किया जा सकता है !

(28फरवरी, 2019)

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