(व्यवहारवादी (प्रैग्मेटिस्ट) और दुनियादार लोग "ठोस वास्तविकता" के करीब होने के नाम पर सपना देखने की खिल्ली उड़ाते हैं ! जिनके पास कभी कोई भविष्य-स्वप्न नहीं होता, इरादों और मंसूबों की कोई ऊँची उड़ान भी उनके पास नहीं होती ! वे कभी नव-सृजन के किसी अभियान के हिरावल नहीं बन पाते ! लेनिन ने ऐसे "अतिव्यावहारिक" कम्युनिस्टों की खिल्ली उड़ाते हुए यहाँ उन्नीसवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी जनवादी लेखक पीसारेव को उद्धृत किया है ! )
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"हमें स्वप्न देखना चाहिए !" ये शब्द लिखते ही मैं एकाएक चौंक पड़ा I मुझे लगा मानो मैं "एकता सम्मलेन" में बैठा हुआ हूँ और मेरे सामने 'राबोचेये देलो' के सम्पादक तथा लेखक-गण बैठे हुए हैं I साथी मार्तीनोव उठते हैं और मेरी और रुख करके बड़ी कठोर मुद्रा के साथ कहते हैं : " जनाब, मुझे यह प्रश्न करने की इजाज़त दीजिये कि क्या किसी स्वायत्त सम्पादक-मण्डल को पहले पार्टी समितियों की राय लिए बिना सपना देखने का अधिकार है ?" और उनके बाद साथी क्रिचेव्स्की उठते हैं और वह ( साथी प्लेखानोव को बहुत पहले ही ज़्यादा गूढ़ बनाने वाले साथी मार्तीनोव को भी दार्शनिक ढंग से और गूढ़ बनाते हुए ) और भी अधिक कठोर मुद्रा के साथ कहते हैं : "मैं और आगे जाता हूँ I मैं पूछता हूँ कि क्या किसी मार्क्सवादी को सपना देखने का कोई अधिकार है, जबकि वह जानता है कि मार्क्स के मतानुसार मानव जाति अपने सामने सदा ऐसे कार्यभार रखती है जिन्हें वह पूरा कर सकती है, और यह कि कार्यनीति पार्टी के कामों के विकास की प्रक्रिया है, जो पार्टी के विकास के साथ-साथ बढ़ रहे हैं ?"
इन कठोर प्रश्नों का विचार मात्र मेरा खून सर्द कर देता है और मेरे मन में सिवा इसके और कोई इच्छा नहीं रह जाती कि कहीं कोई ऐसी जगह मिल जाए जहाँ मैं छिप जाऊँ I सो मैं पीसारेव की आड़ लेने की कोशिश करूँगा I
पीसारेव ने सपनों और वास्तविकता के टकराव के विषय में लिखा था : "टकराव कई तरह का होता है I हो सकता है कि मेरा सपना स्वाभाविक घटना-क्रम से आगे चला जाए या घटनाओं की दिशा से बिलकुल अलग एक ऐसी दिशा में चला जाए, जिसमें घटनाओं का स्वाभाविक प्रवाह कभी नहीं जाएगा I पहली सूरत में मेरे सपने से किसी प्रकार की हानि नहीं होगी, बल्कि संभव है कि उससे श्रमजीवी मानव की क्रियाशीलता को बल मिले और उसमें नया जोश आ जाए ... ऐसे सपनों में कोई बात ऐसी नहीं होती, जिससे श्रमिकों की शक्ति के बहक जाने या पंगु हो जाने का खतरा हो I इसके विपरीत, यदि मनुष्य इसप्रकार सपना देखने की क्षमता से बिलकुल वंचित कर दिया जाये, यदि वह समय-समय पर घटनाओं से आगे निकल जाने और जिस चीज़ को तैयार करने में अभी उसने हाथ ही लगाया है, उसकी पूरी मानसिक तस्वीर न बना सके, तो मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि फिर मनुष्य को कला और विज्ञान तथा व्यावहारिक प्रयासों के क्षेत्र में व्यापक और श्रमसाध्य कार्य का बीड़ा उठाने और उसे पूरा करने की प्रेरणा कहाँ से मिल पायेगी ... सपनों तथा वास्तविकता के टकराव से कोई हानि नहीं होती है, पर शर्त सिर्फ़ यह है कि सपना देखने वाला व्यक्ति अपने स्वप्न में सचमुच विश्वास करता हो, जीवन का ध्यानपूर्वक अवलोकन करते हुए जीवन के तथ्यों का अपनी कल्पना के महलों से मिलान करता रहता हो और आम तौर से अपने सपनों को साकार करने के लिए ईमानदारी से काम करता हो I यदि सपनों का जीवन से थोड़ा सा भी सम्बन्ध है, तो सब ठीक है I"
-- लेनिन
( 'क्या करें' पुस्तक में सपनों के बारे में पीसारेव को उद्धृत करते हुए )
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