Friday, November 23, 2018


उत्सवधर्मियों के पास जीवन का उत्सव मनाने की कूव्वत नहीं होती।

जीवन का उत्सव सिर्फ़ और सिर्फ़, वे ही मना सकते हैं जिन्होंने सपने देखने की आदत नहीं छोड़ी है, जो न्याय के लिए कठिन युद्ध लड़ने को तैयार होते हैं, जीने के मानव-द्रोही तरीकों को बदलना ही जिनके जीने का तरीका होता है I सिर्फ़ और सिर्फ़, वे ही सच्चे अर्थों में सृजनशील हो सकते हैं I जीवन के पक्ष में जो मृत्यु को भी वरण करने को तत्पर हो, वही एक रुग्ण समाज में जीते हुए भी जीवन का उत्सव मना सकता है !

उत्सवधर्मी दरअसल अकेलेपन के शिकार लोग होते हैं, या फिर, बेहद स्वार्थी क़िस्म के विलासी जो इस 'मिथ्या-चेतना' के सहारे जीवन बिताते चले जाते हैं कि वे उत्सव के आनंद से सराबोर हैं I दरअसल ये एक किस्म के आत्मिक नशे की खुराक पर जीने वाले लोग होते हैं I ये "प्रसन्नचित्त हृदयहीन" लोग होते हैं, जो आपके आसपास की बौद्धिक-सांस्कृतिक दुनिया में भीड़ की तरह मौजूद हैं I इन लोगों की "प्रसन्नता" आततायी सत्ता को वैधता का प्रमाण-पत्र देती है और इसलिए इनकी "भद्र-कुलीन प्रसन्नता" प्रायः सत्ता-पोषित हुआ करती है।
(21नवम्‍बर,2018)

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