Monday, October 29, 2018


पूँजीवाद का जब चरम पतन होता है तो वह उसकी राजनीतिक संस्कृति में घनीभूत रूप में दीखता है ! क्या आज से 50-60 साल पहले कोई सोच सकता था कि पूँजीपति वर्ग के चुने हुए प्रतिनिधियों के रूप में संसद-विधानसभाओं में इसकदर गुंडों-मवालियों, लम्पटों, हत्यारों, बलात्कारियों, दलालों, ठेकेदारों, ठगों-बटमारों और मूर्खों-जाहिलों की धकापेल होगी ? क्या कोई सोच भी सकता था कि लड़कियों की जासूसी करवाने वाले, सीधे-सीधे कुछ पूँजीपतियों की दलाली करने वाले, फ़र्जी डिग्री वाले,महामूर्ख, हत्यारे और जाहिल देश के और देश की "सबसे बड़ी पार्टी" के सर्वोच्च पदों पर बैठे होंगे ? जितना लाइलाज आर्थिक संकट, उतना ही भयंकर राजनीतिक पतन ! भारतीय पूँजीवाद पतन के गर्त तक पहुँच चुका है और भारतीय समाज एक ज्वालामुखी के दहाने पर बैठा हुआ है ! एक वैकल्पिक भविष्य की दिशा में यदि हम आगे नहीं बढ़ेंगे तो घोर अराजकता भरे महाविनाश को गले लगायेंगे ! सोचना तो पड़ेगा ही ! जो कायर, कूपमंडूक और भाग्यवादी लोग सोच नहीं रहे हैं, वे अपने हाथों अपने बच्चों के भविष्य को अन्धकार में धकेल रहे हैं, वे एक जलते मकान में चैन की नींद सो रहे हैं !

(17अक्‍टूबर,2018)

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