Wednesday, September 26, 2018



हिन्दी साहित्य, विशेषकर कविता को गत कुछ ही वर्षों के भीतर, एक के बाद एक, कई आघात लगे हैं I वीरेन डंगवाल, नीलाभ, पंकज सिंह, कुँवर नारायण चन्द्रकान्त देवताले, केदार नाथ सिंह, दूधनाथ सिंह और अब विष्णु खरे का जाना ...
बहरहाल, जीवन अपनी गति से चलता रहता है और पुराने की जगह को नया भरता रहता है I फिर भी कुछ रिक्तियाँ और अनुपस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें हम लम्बे समय तक महसूस करते हैं, भले ही जीवनकाल में उन लोगों से हमारी कुछ गंभीर असहमतियाँ और गहरी शिकायतें ही क्यों न रही हों I जिनका हमारे जीवन पर कम प्रभाव पड़ता है, प्रायः उनसे असहमतियाँ, अपेक्षाएँ और शिकायतें भी कम ही होती हैं I
शोक के दिन बीत जाने के बाद वह महत्वपूर्ण समय आता है जब हम अपने अग्रजों-पूर्वजों के अवदानों और ऋणों का वस्तुपरक मूल्यांकन करने की कोशिश करते हैं I जीवन की पूरी गति को समझने के बाद भी कुछ लोगों के बारे में अक्सर यह ख़याल आता रहता है कि काश ! जीने को उन्हें थोड़ी और लम्बी उम्र मिली होती !

(20सितम्‍बर,2018)

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