जो थक गयी है, वह अगर तुम्हारी आत्मा है, तो नींद से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा !
पहाड़-समंदर घूमने से, संगीत-कला-साहित्य से भी बस थोडा फ़र्क पड़ेगा, और वह भी कुछ देर के लिए !
आत्मा की थकावट तो बस लीक तोड़कर जीने से दूर होती है, अन्याय के ख़िलाफ़ बग़ावत करने से दूर होती है, बर्बरों के ख़िलाफ़ निर्भीकता से सीना तानकर खड़े होने से दूर होती है, विज्ञान को कमान में रखकर प्रयोग और संधान भरा जीवन जीने से दूर होती है I
थकी-हारी आत्मा लिए घिसटते हुए, रेंगते हुए जीते चले जाने की तुलना में एक निर्भीक और तरोताज़ा आत्मा के साथ मौत से दो-दो हाथ करना, और यहाँ तक कि एक बेहद छोटा जीवन जीकर मृत्यु को वरण कर लेना भी लाख गुना श्रेयस्कर है I
अब ऐसी बातें करने का ज़माना नहीं रहा I "समझदार-सयाने" लोग ऐसी बातों को बचकानी भावुकता मानते हैं I वे "सुचिंतित साहस" की नसीहतें देते हैं और कहते हैं कि अभी उसका भी समय नहीं है I घोंसलों में बैठे पक्षी तूफानों में उड़ान भरते बाज को पागल समझते हैं I एक बेहद ठण्डे और ठहरे हुए समय में क्रांतिकारी बदलाव का सपना देखने और उद्यम करने वालों को भी पागल ही माना जाता है I
शान से, असली इंसान की तरह जीने के मजे लूटने हैं तो पागल हो जाओ !
(20जुलाई,2018)
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