देर रात के राग

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Tuesday, May 08, 2018


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देर रात के राग...

यानी 'लेट नाइट रागाज', जो किसी को नींद के आगोश में ले जाते हैं, किसी की नींद उचाट सकते है और किसी को उनींदेपन से भर सकते हैं। सुनने का अपना-अपना सलीका है और संगीत की अपनी-अपनी समझ। देर रात के रागों को सुनते हुए कोई कॉफी लेकर खिड़की पर बैठा रात के ढलने की प्रतीक्षा करता है तो कोई जीवन की किसी न किसी नयी लय का संधान करता है।
आज के समय में विचार -- जिनमें जीवन की लय है, सपनों के सुर हैं, स्‍मृतियों के ताल हैं -- वे देर रात के रागों के समान हैं जो भोर की उजास का आह्वान करते हुए आसपास के सन्‍नाटे को तोड़ते रहते हैं।
इसलिए विचारों, संवेदनाओं-भावनाओं के इस कोने का नाम मैंने 'देर रात के राग' रखा है।


देर रात के राग बजते हैं दूर कहीं।

दहलीज़ पर बैठी
नींद प्रतीक्षा करती रहती है।
अंधेरा चील की तरह
सपनों को चोंच में दबाने के लिए
घात लगाता है।
उनींदे संगीत की ढलान पर
घुटन भरी बेचैनी
भोर की उजास को आवाज़ देती है।


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कविता कृष्‍णपल्‍लवी

परिचय: सामाजिक-सांस्‍कृतिक कार्य

कविता लेखन

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