Tuesday, March 13, 2018

आज़ादी और सम्मान



आज़ादी और सम्मान के लिए लगातार लड़ते रहने की ज़िद के नाम !

मुझमें साँस लेती है आज़ादी I
मेरा ज़ेहन सपनों की वादी है I
बग़ावत मेरी धमनियों-शिराओं में
खून बनकर बहती है I
कितनी-कितनी हारों के बाद भी
दिल मेरा तैयार नहीं छोड़ने को
लड़ते रहने की जिद I
कई बार काटे गए मेरे पंख
पर रात भर में ही
वे फिर उग आये
और मैं निकल पड़ी खुले आकाश में
तूफानों के प्रदेश की यात्रा पर I
***

--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

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