क्रांतिकारी बदलाव महज़ अन्याय के प्रति घृणा, विद्रोह की भावना या परिस्थितियों की अनुभववादी समझ की बदौलत नहीं आ सकता। यह सचेतन मानवीय हस्तक्षेप के बिना भी नहीं हो सकता, हालात लोगों के लिए चाहे जितने भी असह्य हों।
क्रांतिकारी बदलाव के लिए क्रांतिकारी विचारधारा ज़रूरी है, क्रांति के विज्ञान की समझ ज़रूरी है। यह समझ दिन-रात अपने जीने की न्यूनतम जरूरतों के लिए मेहनत करने वाला मेहनतकश समुदाय स्वयं हासिल नहीं कर पाता। क्रांति के विज्ञान की समझ समाज के कुछ थोड़े से उन्नत चेतना वाले तत्व ही पहले हासिल कर पाते हैं, जिन्हें दर्शन, समाज विज्ञान और संस्कृति तक पहुँचने के अवसर प्राप्त होते हैं। इनमें से भी कुछ ही होते हैं जो क्रांतिकारी बदलाव की प्रक्रिया में शामिल होने का जोखिम उठाने को तैयार होते हैं। यही तत्व क्रांतिकारी वर्ग तक क्रांति की विचारधारा लेकर जाते हैं और इसतरह क्रांतिकारी वर्ग का हरावल दस्ता तैयार होता है।
न तो हरावल खुद क्रांति कर सकता है, न ही हरावल के बिना मेहनतकश जनसाधारण ही क्रांति कर सकता है। व्यापक जनसमुदाय को जागृत-संगठित किए बिना क्रांति कर लेने की सोचने वाले यदि अधैर्यवान साहसी हुए तो वामपंथी दुस्साहसवाद का रास्ता अपना लेते हैं और यदि कायर, दुनियादार ज्ञानी हुए तो क्रांति के नाम पर बस किताबी कीड़ा बने रहते हैं, कोरे बुद्धिवादी के रूप में किताबी ज्ञान बघारते रह जाते हैं तथा अकर्मक-अमूर्त विमर्शों की जुगाली करते रहते हैं।
जो लोग विचारधारात्मक कार्य और हरावल दस्ता संगठित करने के काम की अवहेलना करके सोचते हैं कि जनांदोलन और स्वयंस्फूर्त जनविद्रोह स्वतः क्रांति की मंज़िल तक जा पहुंचेंगे, वे स्वयंस्फूर्ततावादी आन्दोलनपंथी होते हैं, जो कुछ दिनों की कवायदों के बाद या तो घाघ, भ्रष्ट ट्रेड यूनियन नौकरशाह बन जाते हैं या क्रांति-कर्म से ही विमुख हो जाते हैं।
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