Wednesday, December 13, 2017


... सबसे असहनीय नहीं है पराजय
और न लोगों से भला-बुरा सुनना
और न प्रतिक्रिया के प्रेतों का श्मशान-नृत्य I
सबसे असहनीय शायद यह है कि
बौनों की अदालत में
वाचाल बौने जिरह कर रहे हैं,
जूरी के आदरणीय अनुभवी बौनों से
मशविरा कर रहे हैं विद्वान बौने न्यायमूर्ति,
और मुक़र्रर की जा रही है
वीरोचित व्यवहार के लिए
माक़ूल सज़ा I

-- शशि प्रकाश
(20 जनवरी,2003)
('सबसे असहनीय' कविता का एक अंश, 'कोहेकाफ़ पर संगीत-साधना' कविता संकलन से)

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