Monday, October 03, 2016






कला-साहित्य की समालोचना के दो मापदण्ड होते हैं --- राजनीतिक और कलात्मक ।...

एक राजनीतिक मापदण्ड होता है और एक कलात्मक मापदण्ड ; इन दोनों के बीच क्या सम्बन्ध है ? कला को राजनीति के समकक्ष नहीं रखा जा सकता, और न कलात्मक सृजन व समालोचना की किसी एक पद्धति को ही आम विश्व-दृष्टिकोण के समकक्ष रखा जा सकता है।  हम न सिर्फ़ एक अमूर्त और बिल्कुल अपरिवर्तनीय राजनीतिक मापदण्ड के अस्तित्व को मानने से इनकार करते हैं, बल्कि एक अमूर्त और अपरिवर्तनीय कलात्मक मापदण्ड के अस्तित्व को मानने से भी इनकार करते हैं ; सभी वर्ग-समाजों में हर वर्ग के ख़ुद अपने राजनीतिक और कलात्मक मापदण्ड होते हैं।  लेकिन सभी वर्ग-समाजों में सभी वर्ग हमेशा राजनीतिक मापदण्ड को प्रमुख स्थान देते हैं और कलात्मक मापदण्ड को गौण। ...हम जिस चीज की माँगकरते हैं वह है राजनीति और कला की एकता, क्रान्तिकारी राजनीतिक विषयवस्तु और यथासम्भव अधिक पूर्ण कलात्मक रूप की एकता। वे कलाकृतियाँ जिनमें कलात्मक प्रतिभा का अभाव होता है बिल्कुल शक्तिहीन होती हैं, चाहे वे राजनीतिक दृष्टि से कितनी ही प्रगतिशील क्यों न हों।  इसलिए हम ऐसी कलाकृतियों का सृजन करने जिनका राजनीतिक दृष्टिकोण ग़लत होता है, तथा "पोस्टरबाजी व नारेबाज़ी जैसी शैली" उन कलाकृतियों का सृजन करने जिनका राजनीतिक दृष्टिकोण तो सही होता है लेकिन जिनमें कलात्मकता का अभाव होता है, इन दोनों ही प्रकार की प्रवृतियों का विरोध करते हैं।  साहित्य और कला के सवालों के बारे में हमें इन दोनों ही मोर्चों पर संघर्ष चलाना चाहिए।
--- माओ त्से-तुंग (येनान की कला-साहित्य गोष्ठी में भाषण, मई 1942)

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