एक नवोदित लेखक के नाम नदेज़्दा क्रुप्स्काया का पत्र
3 जुलाई, 1936
प्रिय साथी,
मुझे लगता है कि तुमने जो रास्ता अपनाया है वह सही नहीं है। तुम यदि एक सच्चे कवि, एक ऐसे लेखक बनना चाहते हो जिससे जनता मुहब्बत करे और जिसे वह पसन्द करे, तो तुम्हें बहुत काम करना पड़ेगा, अपने को उसके योग्य बनाना पड़ेगा। इस कार्य में कोई विश्वविद्यालय, लेखकों का कोई भी संघ तुम्हारी मदद नहीं कर सकेगा।
तुम्हारे पत्र से मैं यह नहीं समझ पायी कि तुम्हें किस चीज़ की तकलीफ़ है, तुम्हारे साहित्यिक जीवन के अलावा और वह कौन सी चीज़ है जो तुम्हें उद्विग्न कर रही है। अपने इर्द-गिर्द के समस्त जीवन को जो व्यक्ति ''लेखक की गाड़ी की खिड़की से'' बिना किसी लगाव के देखता है वह कभी सच्चा लेखक नहीं बन सकेगा। तुम खनन संस्थान में काम कर रहे हो, किन्तु खनिकों के जीवन के बारे में, उनके मनोभावों के बारे में क्या तुम्हें कोई जानकारी है? ये खनिक सर्वहारा वर्ग का एक प्रमुख अंग है, और उनमें तुम्हारी दिलचस्पी नहीं है ... मैं आशा करती हूँ कि यह स्थिति सिर्फ इसी समय तक सीमित रहेगी।
मुझे लगता है कि तुम इन्जीनियर नहीं बन सकोगे, उसके लिए एक भिन्न प्रकार का रुझान आवश्यक होता है, एक भिन्न प्रकार की ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है।
मैं सलाह दूँगी कि तुम किसी खान के अन्दर जाओ, जो ज्ञान तुमने प्राप्त किया है उसका उपयोग करो, वहाँ पर साधारण मज़दूरों के साथ कन्धा मिलाकर काम करो, वे किस तरह रहते हैं, उनके घर की क्या परिस्थितियाँ हैं इसका ध्यान से निरीक्षण करो। तब कविताओं के लिए जो विषय तुम चुनोगे वे जीवन के अनुरूप होंगे और तुम्हें ऐसी चीज़ें मिलेंगी जो तुम्हें प्रेरणा प्रदान करेंगी। नवोदित लेखकों में अक्सर बहुत नकचढ़े किस्म का एक अहम् पाया जाता है -- और बहुत बार तो मज़दूरों के बच्चों में भी यह अहम् देखने को मिलता है -- किन्तु (उसे) मन-दिमाग से पूरे तौर से निकाल बाहर करना चाहिए।
भ्रातृपूर्ण शुभकामनाओं के साथ,
एन. क्रुप्स्काया
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